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________________ चित्सुखाचार्य के अनुसार स्वप्रकाशता की अवधारणा 37. 39. साध्यविपर्ययव्याप्तो हेतुविरुद्धः । तर्क भाषा जब साध्य का साधन करने के लिए किसी ऐसे हेतु का प्रयोग कर दिया जाता है जो साध्य से न होकर साध्याभाव से होता है तब वह हेतु विरुद्ध कहलाता है । जैसे शब्द नित्य है क्योकि काय' है। कार्यत्व हेतु साध्य नित्य से व्याप्य नहीं है वरन् साध्याभाव अनित्य से व्याप्य है अर्थात् जो कार्य होता है यह अनित्य ही होता है । "साध्यविपर्ययच्याप्तो हेतुविरुधः" तर्कभाषा पक्षसपक्षविपक्षवृद्धिः साधारण:-तर्क भाषा 38. सव्यभिचार या अनै कान्तिक हेत्वाभास के तीन प्रकार में से यह एक प्रकार है। साधारण अनै कान्तिक वह हेतु होता है जो पक्ष, सपक्ष और विपक्ष तीनों में रहता हो । जैसे शब्द नित्य है क्योकि प्रमेय है जैसे आकाश । इस अनुमान में प्रमेयत्व हेतु पक्ष शब्द, सपक्ष आकाश व बिपेक्ष. घट आदि अनित्य पदार्थ तीनों में रहता है। असाधारणानकान्तिकः स एव यः सपक्षविपक्षाभ्यांयावृत्तः पक्ष एव वर्तते -तक भाषा असाधारण अनै कान्तिक, अनैकान्तिक का दूसरा प्रकार है, यह वह हेतु होता है जिसको सपक्ष एवं विपक्ष दोनों से व्यावृत्ति होती है और मात्र पक्ष में सत्ता रहती है. जैसे भूमि नित्य है, क्योंकि उसमें गन्ध है इस अनुमान में गन्ध हेतु असाधारण भने कान्तिक है क्योंकि वह आकाश रूपी सपक्ष (जो निश्चित रूप से नित्य है) व जल रुपी विपक्ष (जो निश्चित रूप से अनित्य है) में न रह कर मात्र पक्ष भूमि में रहता है। 40. अन्वयव्यतिरेकदृष्टान्तरहितोऽनुपसंहारी |-तक संग्रह अन्वयव्यतिरेक उदाहरण शुन्य हेतु अर्थात् पक्षमात्र में हेतु का होना किन्तु पक्ष में साध्य सन्दिग्ध है तथा उदाहरण कोई नहीं है। अतः हेतु दुष्ट माना जायेगा, जैमे सभी अनित्य है क्योंकि प्रमेय है। चकि यहाँ सभी' पक्ष हैं अतः उदाहरण कहाँ से मिलेगा ? 41. यस्य प्रत्यक्षादिप्रमाणेन पक्षे साध्याभावः परिच्छिन्नः ।-तक भाषा जब किसी अनुमान का हेतु अनुमानेतर प्रमाण से खंडित या बाधित होता है तब वह अनुमान दोषपूर्ण होता है और उस दोष को बाधित कहते हैं । जैसे अग्नि शीतल है कपोंकि कार्य है, इस अनुमान का खंडन अग्नि के प्रत्यक्ष प्रमाण (स्पर्श) से होता है। 42 यस्य प्रतिपक्षभून हेत्वन्तर विद्यते ।-तक भाषा जब किसी हेतु के साध्य के विपरीत अर्थ का साधक अन्य हेतु विद्यमान होता है तब हेतु (Arध्य के साधनाथ प्रयुक्त) सत्प्रतिपक्ष कहलाता है । जैसे शब्द की नित्यता का (आकाश की भांति अदृश्य होने से) खडन (अर्थात् शब्द की अनित्यता) घट की भांति एक काय' होने से होता है। 43. त्वज्ञान तवा परोक्षव्यवहारयोग्यत्वे सति वेद्य न भवति ज्ञानल्यान्मदीय ज्ञानवत् (आपका झान पक्ष) आपके अपरोक्ष व्यवहार की योग्यता से युक्त वेद्यत्व बोला नहीं है (साध्य) क्योंकि ज्ञानत्ववाला है (हेतु) जैसा मेरा शान (उदाहरण) । --चि. पृ. 36.
SR No.520763
Book TitleSambodhi 1984 Vol 13 and 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1984
Total Pages318
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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