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सारस्वत रूपमाला
ला० द० विद्यामदिर अहमदाबाद में उपस्थित श्री पुण्यविजयजी महाराज संग्रह की स प्रति का न० ४०३ है । इस प्रति का परिमाण २४ x १०.२ सें. मी. है । इसके कुल पत्रों की संख्या ५ है । प्रत्येक पत्र में १५ पक्तियाँ हैं तथा प्रत्येक पक्ति में प्रायः ४३ से ४५ तक के अक्षर पाये जाते हैं । इस प्रति का लेखन संवत् १७४० है । इसमें दो सर्ग है । प्रथम सर्ग में १०० श्लोक हैं तथा द्वितीय सर्ग में ५३ श्लोक हैं । कुल श्लोकों की संख्या १५३ है। इस कृति की भाषा सस्कत है तथा इसका विषय व्याकरण है। आदि । ॥ नमा भारत्यै ॥
नत्वा सार्वपदद्वन्दु ध्यात्वा सारस्वत मह. ।
सारस्वतक्रियाट्यूहं वक्ष्ये शैक्षस्मृतिप्रदम् ॥ १ ॥ अन्त- सारस्वतक्रियारूपमाला श्रीपद्मसुंदरैः ।
संहब्धाऽलइकरोत्वेषां सुधिया(यां) कण्ठक'दलीम् ।। ५३ ।।
इनि सारस्वतरूपमाला सम्पूर्णा ॥ संवत् १७४० वर्षे मार्गशिरमुदि १ शुक्रेऽलेखि ।।
प्रज्ञापनास्त्रअवचूरि यह प्रति ला. द. विधामदिर, अहमदाबाद में उपलब्ध है। इसका क्रमांक ७४०० है। इस प्रति का परिमाण २४.७४१०.८ से.मी. है । इस प्रति के कुल पत्र २८३ हैं । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तिया है तथा प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ३५ तक अक्षर पाये जाते हैं। प्रति की दश। अच्छी है ।
___ यह हस्तप्रति स. १६६८ मैं आगर। नगर में बादशाह जहाँगीर के राज्यकाल में लिखी गई है। प्रज्ञापनपत्र श्रीश्यामाचार्यकृत आगम पथ है। इस पथ पर टीका मलयगिरि ने लिया है तथा उमटीका के आधार से अबचूरि लिखने वाले कवि पद्मसुदर हैं। ग्रंथ की मूल भापा प्राकृत है तथा अवचूरि की भाषा संस्कृत है । इस पथ में ३६ पद है । अवचूरि का अथान ५५५५ है ।
अपरि की आदि-संबंधी द्वधा उपायोपेयभावलक्षणो गुरुपर्वक्रमलक्षणश्च । तत्राद्यस्तर्कानुसारिणः प्रति । तथा वचनरूपापन्न' प्रकरणमुपायस्तत्परिज्ञान चोपेयं । गुरुपर्वक्रमलक्षणः केवल श्रद्धानुसारिणः प्रति । तं चाग्रे स्वयमेव सूत्रकृदभिधास्यति । इदं च प्रज्ञापनोपाज श्रीसम बायांगसूत्रसंबंधि ततः श्रयोभूतमतो मा भुदत्र विन्न इति तदुपशांतये मंगलमाहअन्त
प्रशस्ति ---(प्रतलेखक की) · संवत् १६६८ वर्षे आषाढमासे शुक्लपक्षे दशमीतिथा आदित्यवासरे चिनानक्षत्रे रघियोगे श्रीआगरामहानगरे पातिसाही श्रीजहाँगीरविजयराज्ये श्रीमत्श्री विजयजगच्छाधिराज श्रीपूज्यश्रीविजयर/जर्षिश्रीपूज्यश्रीधर्मदासर्षिश्रीपूज्यश्रीक्षमासागरसूरिश्रीपूज्यश्रीपद्मसागरसस्विराणां शिष्यपण्डितकेशराजेन श्रीपूज्यश्रीगुणसागररिणामुप