SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि परिचय और उनकी कृतियो कवि पद्मसुन्दर पार्श्वनाथ महाकाव्य के रचयिता श्री पद्मसुन्दर पद्ममेरु के शिष्य थे, तथा आनन्दमेरु के प्रशिष्य थे । वे नागपुरीय तपागच्छ के गणि थे I श्री पद्मसुन्दर बादशाह अकबर के दरबार के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक थे । उनका उल्लेख अकबर के मित्र के रूप मे भी किया गया है | अतः यह स्पष्ट है कि श्री पद्मसुन्दर अकबर के समकालीन थे। वादशाह अकबर का शासनकाल सन १५५६ (1556 A. D.) से लेकर सन १६०५ ( 1605 A. D. ) तक का रहा है । एक अन्य प्रमाण जो पद्मसुन्दर को अकबर के समय का ही घोषित करता है, वह यह है-सन १५८२ में जब श्रीहीर विजयसूरि अकबर के दरबार में आये थे तब तक पद्मसुन्दर का देहान्त हो चुका था तथा उनकी पुस्तकों का भंडार राजकुमार सलीम के पास था । उस भंडार को सलीम ने हीरविजयसूरि को भेंट में दिया जिन पुस्तकों से हीरविजयसूरि ने आगरा में एक पुस्तकालय स्थापित किया और थानसिंह नामक एक जैन श्रावक को उस पुस्तकालय का संचालक बनाया था + | 1. 2. 3. 'पट्टावली समुच्चय, भाग २, चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला क्र० ४४ अहमदाबाद, १९५०, पृ० २२४ / • हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर,' एम० कृष्णामाचारी, दिल्ली, १९७०, पृ० २९४ । , इसका उल्लेख श्रीअगरचन्द नाहटा ने ' अनेकान्त भाग ४, पृ० ४७० में अपने लेख 'उपाध्याय पद्मसुन्दर और उनके ग्रन्थ' में किया है । 'अकबरशाही शृंगारदर्पण, ' गंगा ओरिएन्टल सीरीज नं० १, सम्पादक के० माधव कृष्ण शर्मा, प्रस्तावना, प्रो० दशरदशर्मा का लेख, पृ०२३, 'पद्मसुन्दर, a friend of Akbar 'अकबर द ग्रेट' प्रथम अवृत्ति, आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव, दिल्ली १९६२, पृ० १ व ४८८ । 4. प्रो० दशरथ शर्मा के पद्मसुन्दर पर लिखे लेख से, जिसका उद्धरण के० माघवकृष्ण शर्मा ने अपनी पुस्तक अकबरशाही श्रृंगारदर्पण के पृ० २३ पर किया है । 'सूरीश्वर और सम्राट' मुनिराज विद्याविजय, गुजराती संस्करण, भावनगर, सं० १९७६, पृ० ११९-१२०
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy