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________________ कृष्णा-क्रीडित स्वामी! अन्य शरण्य को प्रभु नही', भालु वली जि दयां पूरह वांछित चित्ति, दुःकृत दहइ, पालइ जि जे आश्रयां । एके कष्ट करी, महा तप धरी, के देव जागे करी मोटु हूँ जि समर्थ, केवल दयां जे भक्त लिइ उद्धरी ॥८६ धन्या दिव्य पुरी अतीव मथुरा श्रीकृष्ण जीणई रभइ जाणे ते जन पुण्यवंत सघला हता जि तीणई समइ । स्वामी! को न जिउ तिहां जि, हवुहं आहीर पींडार वा पामी तु हत आज शुक्ति-पदवी, का ईश छइ वारिवा ? ।।८७ आगई जु न बसिउ शगाल नगरी, बीजी अयोध्यापुरी नो बाहिउ हरिचंद-वासि, न किहीं मेहलिउ एणि छतरी । आ आ अपराधीउ करि कृपा, अन्यत्र वीह रहिउ राखे में तल-पासि, वाशि जमलु, पाले हवइ सांस हिउ ।।८८ मीठ प्राकृत कांत कोमल गुणे, श्रीकांत ते-सिउं वरु जाणी जे मनि सादरु जन हुइ, तु पाप तेह-नूं हरु । हेला जाग अनेकि तीर्थ तप-नूं जु सार लीजइ जोई भोला श्रीपति-श्रीनिवास-चरणे जु भक्ति भोली होई।।८५ जाणे स्वल्प विशेष भक्ति, मति ना, गविई अवज्ञा वह सि हो प्राकृत पामरी परि रहइ, ते पुण्य तेह लहह। ८६ ४ क मू के तू'य, दया, गनि स्व. दमा, लि, ग लई. ८७१ क देवपुरी, येणी ग जेणि रम्या. २. क ना नि जन प्रवन सघला जाणे य तेणे समई, ग, तेणिक हब, ख कांत राजु, हब, ग. सग ताहां उओ. ४. ग. पापी तुहि तु. ८८. २. ख. ने। वाहू हरिश्चद्र, तेणाइ ४. ख. बासि मई तमा, वलि हवन, ग. वाशे समनि. ८९. ख. श्रीकालने संबरे. ग श्रीयान नि संवरः २. ख जे जन सादरू मनि, ह, ग, जे जन सार मनि हो र ४. ग. तो भक्ति .. ९०. १. ख. जाणी; दक्ष महिना. ग दक्ष महिमा २. Missing in ग. ख शू हो,
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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