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कृष्ण-क्रीडित ईछां बाल-मृगा वने विचरतां के दव्य लाया फिरी रोतां बालक धावतां हठि घणई मा-सिउ विछोह्यां हरी । फोडी पालि भर्या सरोवर-तणी हाथई कुदाली लेई जउ मई एह न की, कृपाल ! मिलीइ, वाहु म वाचा देई ॥२२॥
स्वामी ! कृष्ण ! अपार जे अलजयां, ते काइ अवेखीइ ? आशालुब्ध रहइ मनोरथि भा', ते प्राण-सिउ लेखीइ । पालई प्रीति ही जि लाजि मरतां कामिई कदर्थिऊ सहइ कीजइ सार, कृपाल ! बालपण-नई जे नेहि बांधा रहइ ॥२३॥ ज्ञानी स्वामिन ! चित्तवृत्ति सघली तूं प्रीछि हैआ-तणी
तूं काइ निरापराध भजतां ऊवेखि किश्या-भणी ? । ईछां तं विचरइ जि, राति मुझ-नई तु झूरतां नही जाइ चाधु स्नेह हैइ जि बालपण-नु, मूकिउ न ते मूंकाइ ॥२४॥ जातां मारगि कृष्णि दीन विलखी राही रहीनइ जोई साध्वी सुंदरि एकली टलवलइ एकाग्र भक्तिई होई । मोटा-साथि सनेह, देह दमिवु, वेलां कुणई साभरइ दी? देव तिसइ जि बीज-झबकई तु हर्ष हैइ धरइ ॥२५॥ आयी ऊलटि, ऊध्रसी स्मर-रसिइ, प्रेमाकुली नाथ-सि हर्षिइं नेत्र गल्या दया-प्रभि तदा ठूछयां हसी हाथ-सिउँ । 'ए शू कामिनि ! कांई काजल गलइ ?' श्रीकृष्ण पूछ, तिसिई 'स्वामी ! काइ वीसारि पावस-समइ, अन्यत्र कांइ तूं वसइ ? ॥२६॥
२२. १. क. मृगी. २. ख विछायां. ३. ग. भां, कूदाली. ४. क, एह कर्या, ख, ग, ए न कर्या;ग मेली.
२३. २. ख. ग. आशालध. ३ क नहीं य. ४. क. नाह बांधी ख. बाधा ग. बाधा.
२४ २. ख. तुमइकाइ, ३ क. झुरतों, ख. ग.न. . २५. क. दोनि. ४. क. अबुकि.
२३. २. क. दयां अति करी रोक्यों हसी, ग. दया प्रभु करी लुह्यां, ३. ग आज काजल, पूछि. ४. क. ग. कां.
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