________________
अर्बुदाचलका जैन अभिलिखित साहित्य
रसेश जमीनदार
(१)
१.१ उत्कीर्ण लेखों का महत्व
इतिहास निर्माण के लिए तीन साधन मुख्य है । इनमें मौखिक परंपरा, लिखित साहित्य और पारि भोगिक सामग्री का समावेश होता है । हमें यहाँ लिखित साहित्य का परामर्श करना है, आज के परिसंवाद के विषय वे सदर्भ में ।
लिखित साहित्य के नानाविध प्रकार में पुरातत्वीय दृष्टि से एक है उत्कीर्ण लेख, जिस में मुद्रालेख, ताम्रपत्र लेख, शिलालेख मृदूभाण्डलेख इत्यादि समाविष्ट होते हैं । भारतीय इतिहास और संस्कृति में संशोधन करने के लिए अभिलिखित साहित्य महत्त्व का स्रोत माना गया है ।
(२)
२.१ अर्बुदाचल के दो ग्रंथ
अभिलिखित साहित्य में अर्बुदाचल प्रदेश के संदर्भ में हम केवल उत्कीर्ण लेखों का विनियोग करेंगे ! खास तौर पर हम मुनिराज श्री जयन्तविजयजी से संपादित हुए 'श्री अबु दप्राचीन-जैन-लेख-संदेह' और 'अ' दाचलप्रदक्षिणा जैनलेखसंदाह' (जो असल में उनके 'आबू' ग्रंथ श्रेणी के क्रमश: भाग २ और ५ के रूप में प्रकाशित हुए हैं) ग्रंथों में प्रकाशित हुए १३०९ छोटेमोटे अभिलेखो का अवलोकन करेंगे ।
२. २ जयन्तविजयजी का प्रदान
मुनिराज जयन्तविजयजी ने सभी लेख उपर्युक्त दे। ग्रंथों में गुजराती अनुवाद और समालोचना के साथ प्रसिद्ध किये हैं । श्री अर्बुद - प्राचीन जैन - लेख - संदोह' में कुल मिलाकर ६६४ लेख समाविष्ट हैं । ये सभी लेख आबू पर्वत पर स्थित खास कर के देलवाडा और अचलगढ में आये हुए जिन मंदिरों में पाये जाते हैं । इस तरह इन लेखों की भौगोलिक सीमा मर्यादित है । 'अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैनलेखसंदोह' नामक इस मुनि के दूसरे ग्रंथ में ६४५ लेख मूलपाठ, गुजराती अनुवाद और संदर्भनोध के साथ छपे हुए हैं। इस ग्रंथ में समाविष्ट सभी लेख आयु पर्वत की लह में स्थित ७१ गाँवों में आये हुए जिन-मंदिरों में से प्राप्त हुए हैं । इस दृष्टि से इस ग्रंथ में भौगोलिक विस्तार मर्यादित नहीं हैं। इस कारण इस ग्रंथ में संग्रहीत लेखों के अध्ययन से नाना प्रकार की सांस्कृतिक माहिती की जानकारी प्राप्त होती है ।