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बनारस-कम्पनी शैली की चित्रकला
तेजनारायण मिश्र
अग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे लेकिन भारत की तरकालीन स्थिति ने अंग्रेजी को अपनी व्यापारिक नीति में परिवर्तन करने के लिये प्रेरित किया और उम समय देश की स्थिति उनके अनुक्ल थी जिमका प्रा-पूरा फायदा अंग्रेजों ने उठाया। १८५० ई० के विद्रोह की असफलता ने अंग्रजों को भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना के लिये सुगम स्थिति पैदा कर दी । और देश गजनैतिक व मानसिक रूप से अंग्रेजों का दास हो गया ।
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत में मुगल कला उन्नति के चरम बिन्दु पर थी और यही स्थिति चित्रकला की भी थी। मुगल चित्रकला भारतीय व इरानी चित्रकला के तत्वों से मिलकर पैदा हुयी थी । युरोपीय चित्रकला का हल्का सा प्रभाव हमें मुगल चित्रकला में देखने को मिलता हैं । मुगल कला भी मुगल साम्राज्य के विकास और अवनीति की पथगामिनी रही है । यही कारण था कि मुगल साम्राज्य की अवनति के कारणे कलाकार मुगल दरबार को छोड़कर प्रान्तीय शाशकों के पास आश्रय के लिये गये और एक नयी चित्रकला ने जन्म लिया जो प्रान्तीय चित्रकला के नाम से जानी जाती है जिसमें स्थानीय एव प्रान्तीय विशेषताओं के साथ-साथ मुगल चित्रकला के मूल तत्व भी समाहित थे। और प्रान्तीय चित्र शलिकों ने चित्रों के नये आयाम प्रस्तुत किये । लेकिन यह कला धारा भी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी क्योंकि प्रान्तीय सत्ता भी अग्रेजों के प्रभाव से अछती न रह सकी और कलाकार भी इस विषम स्थिति में जीविकोपार्जन के लिये अन्यत्र शरण लिये परिणाम स्वरूप कला और कलाकार में सृजनात्मक प्रवृत्ति का ह्रास होने लगा और अब कला के नाम पर सस्ती बाजारु कलाकृतियों को स्थान मिलने लगा, जो स्थायी रूप नहीं ले सकी और यही इस कला के लिये अच्छा था क्योंकि इसमें मौलिकता, विशिष्टता और कला बारीकियों का दर्शन कहीं से भी नहीं होता था ।
__ युरोपीय जलरंगों; मशीन द्वारा निर्मित कागजों और युरोपीय चित्रकला के मूल तकनीकी तत्वों को भारतीय चित्रकला के तत्वों के साथ मिलाते हुये तथा विषय के रुप में भारतीय जन-जीवन की घटनाओं और पशु-पक्षियों व व्यक्तिगत शबीहों के माध्यम में एक नयी चित्रकला ने अपना स्वरुप निर्धारित किया जिसे 'कम्पनी शैली की चित्रकला" या फिरंगी चित्रकला के नाम से संबोधित किया गया ।
कम्पनी शैली की चित्रकला जब अपने पूर्ण वेग में थी उस समय भी देश के अन्य