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________________ भगवती सूत्र दलसुख मालवणिया पांचवा अंग वियाहपण्णत्ति व्याख्याप्रज्ञप्ति है (किन्तु व्यवहारमें वह 'भगवती'-जो वस्तुतः उसका विशेषण था-के नाम से ही विशेष प्रसिद्ध है-नाम ही सूचना देता है कि यह भागम विशेष रूपसे बहुमान को प्राप्त हुआ है । कारण यह है कि इसमें भ. महावीर के सवाद है जिसमें उन्होंने जैन धर्म और दर्शन के विषय में विविध चर्चा अपने और अन्य मत के शिष्यों के साथ की है । और इस तरह जैन धर्म और दर्शन की मान्यताएँ अन्यदीय मतों के संदर्भ में स्पष्ट हुई हैं । म महावीर ही उत्तरदाता है किन्तु यह मान लेने की आवश्यता नहीं कि भगवती में जो कुछ कहा गया है वह भ. महावीरने स्वयं कहा था । डा. शुबोंग के अनुसार शतक १ से २० और २५ वा इतने मौलिक हो सकते हैं ।Doctrine of the Jainas p. 88. भगवती के समग्र अवलोकन से यह तो स्पष्ट होता ही है कि उसमें कई ऐसी बाते' हैं जो यादमें भ. महावीर के नाम से जोर दी गई हैं। उदाहरण के तौर पर श्रुतविच्छेद की चर्चा को उपस्थित किया जा सकता है जिसमें कहा गया है कि (शतक २०, उ. ९) पूर्वगत श्रुत एक हजार वर्ष तक स्थित रहेगा और ऐसी कई बाते हैं जो आचार्यों ने बादमें स्थिर की और उनको प्रामाण्य अर्पित करने के लिए भगवती में शामिल कर दी गई । उदाहरण के तौर पर प्रशापना में जोन्यवस्थित पर्चा हुई उनको भगवती में भी स्थान दिया गया और विस्तार के लिए प्रशापनाको ही देख लेने की सूचना की गई। प्रशापनाके पद-१,२,५,६,११,१५,१९,२४,२५,२६ और २७ का निर्देश भगवती के शतको में उपलब्ध है। ऐसी कोई विचारणा भगवती पूर्वग्रन्थों में देखी नहीं माती । अतएव यही मानना उचित होगा कि प्रशापना की वे नाते भगवती में शामिल की गई, न कि प्रशापना में भगवती से । प्रारभिक १-२. जो शतक है उनके जो विषय है वे किसी एक ही विषय की चर्चा से संपर होकर एक शतक में शामिल किये गये हों ऐसी बात नहीं है । परस्पर असंबद्ध स्वतंत्र चर्चाएँ तत्तत् शतकों में सगृहीत है । डो. जील्युने तसत् विषयों को एक साथ क्यों रखा गया है-इसका विवरण रोचक ढंग से दिया है-Viyahapannatti, Intro. किन्तु अन्य शतकों में किसी एक ही विषय की चर्चा संबद्ध रूप से देखी जाती है-यह बात ऐसी है जो प्रारंभिक शतकों से अन्य शतकों की शैली और रचना को पृथक करती है। विषय विचार की दृष्टि से देखा जाय तो विषय का केवल किसी एक प्रश्न को लेकर निरूपण प्रारंभिक शतकों में देखा जाता है । अर्थात् जब जैसा प्रश्न उठा उसका उत्तर भ. महावीर ने दिया यह प्रक्रिया प्रारंभिक शतकों में है । जब कि २० के बादके शतकों में प्रायः एक ही विषय की चर्चा से संबद्ध विविध प्रश्नों का उत्तर शामिल है। इससे कहा जा सकता है कि मूलतः भगवती में भ. महावीर को विविध स्थानों में नाना प्रकार के लोगों ने नो पोधि. १२-1
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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