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________________ જરૂર श्रीपाश्वनाथचरितमहाकाव्य यद्गर्भोद्भव-संयमग्रह महाकैवल्य-निर्वाणता कल्याणेषु सुरासुराः सुरपतिव्रातः समं सादराः । स्फूर्जद्रत्नकिरीटकोटिमणिभिर्नीराजयन्तो जग च्चक्षुस्फीतमहामह स तनुतात् पाश्र्वः सतां मङ्गलम् ।। ६३॥ पूर्व यो मरुभूतिरास स गजो देवश्च विद्याधर स्तस्मादच्युतनिर्जरो नरपतिः श्रीवज्रनाभिर्बभौ । पश्चान्मध्यममध्यमे त्रिदिवा हेमप्रभश्चक्रयभूद् ___ गीर्वाणः स च पार्श्वनाथजिना भूयात् सतां भूतये ।।६४॥ यः शत्रौ कमठे प्रसादविशदा दृष्टि कृपामन्थरा ___व्यातेने भगवान् शतामृतरसाम्भाधिश्च तस्मै ददौ । सम्यक्त्वश्रियमेष शेखरतया ख्यातस्तितिक्षावतां गाम्भीर्यैकपयानिधिः स तनुतान्नः पार्श्वनाथः शिवम् ।।६५।। आनन्ददोदयपर्वतैकतरणेरानन्दमेरोर्गुरोः शिष्यः पण्डितमौलिमण्डनमणिः श्रीपद्ममेरुर्गुरुः । तच्छिष्योत्तमपद्मसुन्दरकविः श्रीपार्श्वनाथाह्वयं । ___ काव्यं नव्यमिदं चकार सरसालकारसंदर्भितम् ।।६६।। (६३) जिन भगवान पार्श्व की गर्भ से उत्पत्ति, संयमग्रहण, केवलज्ञान और निर्वाण कल्याणकों ,में इन्द्र के साथ सुर और असुर सभी आदर के साथ देदीप्यमान रत्नकुटों की कोटि के मणियों से जगच्चक्षुरूप (जिस भगवान की ) आरती करते हैं वह पार्श्वप्रभु सज्जनों के विस्तृत महोत्सव बाले मंगल को करें । (६४) पहले जो (प्रथम भव में ) मरुमूति थे, वही (द्वतीय भव में ) हाथी वने, (तृतीय भव में) देव हुए, (चतुर्थ भव में) विद्याधर देव हुए, उसके पश्चात् (पंचम भव में) अच्युतदेव हुए, और (षष्ट भव में) नरपति श्रीवज्रनाभि राजा (रूप से) शोभित थे । तत्पश्चात् (सप्तम भव में) मध्यममध्यम नामक स्वर्ग में इन्द्र हुए, (अष्टम भव में ) हेमप्रभ चक्री हए, पश्चात् देव हए । ऐसे पार्श्वनाथ जिनदेव सज्जनों के ऐश्वर्य के लिए हों ( अर्थात् उनका कल्याण करें ) । (६५) जिस प्रभु ने दुष्ट शत्रु कमठ में प्रसन्नता से निमल और कृपायुक्त दृष्टि रक्खी, जिस शतामृत-र पसागर प्रभु ने उसे सम्यक्त्व प्रदान किया और जो सहनशीलता वालों में श्रेष्ठ हैं और जो गम्भीरता के उत्तमसागर हैं ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु हमारा कल्याण करें । (६६) आनन्दोदयपर्वत के एकमात्र सूर्य आनन्दमेरु गुरुजी के शिष्य, पण्डितों के मुकुट के मणिरूप श्रीपद्ममेरु थे । उनके उत्तम शिष्य पद्मसुन्दरकवि ने पार्श्वनाथ नामक यह नूतन काव्य रस तथा अलंकारों से युक्त रचा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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