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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्ये स्था शक्तं भवन्मते"यथा पकेन पङ्काम्भः सुरया वा सुराकृतम् । भूतहत्यां तथैवैतां न यज्ञैर्मा?महति ॥१॥ कोहक सरिद्विना तोयं कीदृगिन्दं विना निशा । कीदृग् वर्षी विना मेघः कीदृग् धर्मो दयां विना ॥६२॥ कृपानदीमहातीरे सर्वे धर्मास्तृणाकुराः। तस्यां शोषमुपेतायां कियन्नन्दन्ति ते पुनः ॥६३॥ सर्वे बेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ! । सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च यत् कुर्यात् प्राणिनां दया ॥६॥ एकतः काञ्चनं मेरुं बहुरना वसुन्धराम् ।। एकस्य जीवितं दधाद् न च तुल्यं युधिष्ठिर ! ॥६५॥ सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च सर्वे यज्ञाश्च भारत! । भूताभयप्रदानस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्" ॥६६॥ स्यादि भवन्मतोक्तभगवद्चनप्रामाण्यात् । पार्थेन तत्र विजित: स निजोपपत्या तूष्णीक एव मुनिरास कृतावहेलः । भूयोऽवदत सुकुपिताऽथ तपस्विराडा कारी स्वयंकृतफलं द्रुतमेव लब्ध्वा ॥६७॥ ( बसे कीचड़ से युक्त पानी को कीचड़ से शुद्ध करना असंभव है, जैसे सुरा से लिप्त व्यकिको मुरा से शुद्ध करना असंभव है, उसी प्रकार इस प्राणोहिंसा को यज्ञ से शुद्ध करना असंभव है। (२) सरिता के बिना पानी कैसा, चन्द्रमा के बिना रात्रि कैसी, वर्षा के बिना मेषसा , उसी प्रकार दया के बिना धर्म कैसा ? (६३) दयारूपी नदी के महातट पर धर्मरूपी पास के अंकुर होते हैं। उनके सूख जाने पर फिर वे कैसे विकसित होंगे ? (६४) प्राणियों के प्रति की जाने वाली दया जो कार्य करती है वह कार्य समस्त वेद (भी) नहीं कर सकते, समस्त यश (भी) नहीं कर सकते, तथा समस्त तीर्थस्थानों में किए गये स्नान (भी) नहीं कर सकते हैं। (६५) हे. युधिष्ठिर । एक ओर सुवर्ण का मेरुपर्वत और बहुरत्ना पृथ्वी का दान किया चाय और दूसरी और एक प्राणी को जीवनदान दिया जाये, तब भी पहला दान दूसरे के बराबर नहीं होगा। (६६) हे भारत ! सभी तीर्थों में किये गये स्नान और सभी को प्राणियों के अभयदान की सोलहवीं कला के भी तुल्य नहीं हैं। इस प्रकार आपके मस में बी है, वह यथार्थ है, कारण कि भगवद्वचन उसमें प्रमाण है । (६७) पार्श्व ने यहाँ अपनी युक्ति के द्वारा उसे जीत लिया । वह मुनि अवहेलना (अपमान ) सहित चुप हो गया । पुनः वह तपस्विराज शीघ्र ही अपने कार्य का फल प्राप्त करके क्रोधित होकर बारबार बोला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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