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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य सन्धाय युवराजेन यदि वा मुख्यमन्त्रिणा । अन्तःप्रकोपनं कार्यमभियोक्तुः स्थिरात्मनः ॥१११॥ अन्नमोषै रिपोर्देशावस्कन्दप्लोषसूदनैः । स्वसैन्यस्यावमर्दैन दण्डः स्यादरिनिग्रहे ॥११२॥ तदुक्तम्नाशयेत् कर्षयेच्छत्रून् दुर्गाकण्ट कमर्दनैः । परदेशप्रदेशे च कुर्यादाटविकान् पुरान् ॥११३॥ दूषयेच्चास्य सततं यवसान्नोदकेन्धनम् । भिन्द्याच्चैव तडागानि प्राकारान् परिखां तथा ॥११४॥ स्यादिन्द्रियाणामर्थेषु यदि धर्माऽविरोधिनी । प्रवृत्तिरन्तरङ्गारिनिग्रहस्तं जयं विदुः ॥११५।। यदुक्तम्कामः क्रोधस्तथा मोहो हर्षो मानो मदस्तथा । षड्वर्गमुत्सृजेदेनमस्मिंस्त्यक्ते जयी नरः ॥११६॥ सन्धिश्च विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः ।। षड्गुणा भूभुजामेत जपत्रीप्रणयावहाः ॥११७॥ घोरे प्रवृत्ते समरे नृपयोहतसेन्ययोः । मैत्रीभावस्तु सन्धिः स्यात् सावधिश्च गतावधिः । ११८॥ (१११) युवरान या मुख्यमन्त्री के साथ सन्धि करके स्थिरबुद्धवाले शत्रु के अन्दर प्रकोप पैदा करना चाहिए । (११२) अपने सैन्य द्वारा शत्रु के अन्न की चोरी तथा शन के प्रदेश में हल्ला (शोर), आग और नाश करवा कर (शत्रु को) कुचलना-यह शत्र को दबाने के लिए दण्डनाति है। (११३) कहा भी हैं --जहाँ तक एक भी शत्रु रहे. यहाँ तक दुर्गों का नाश करके शत्रुओं का विनाश करना चाहिए, पतन करना चाहिए, और दुश्मन के प्रदेश में, जङ्गला मं नगरों को (छावनियों का) रचना करनी चाहिए । (११४) शत्र के घास, अनाज के भण्डार, जल व इन्धन को सदैव दूषित करें, तथा तालाब, परकाटे तथा नगर को खाइयों को भो ताड़फोड दे । (११५) यदि इन्द्रियों .. की अपने विषयों में धर्माविरोधी प्रवृत्ति होती है तब अन्तरङ्ग शत्रओं का जो निग्रह होता है उसे विद्वान् लोग जय कहते हैं । (११६) कहा भी है :काम, क्रोध, मोह, हर्ष, अभिमान व मद इस षट् वर्ग (ये छः अन्तःशत्रु है) को छोड दे । इनके छोडने पर पुरुष (यहाँ-राजा) विजयी होता है । (११७) विजयलक्ष्मी के प्रति प्रेम बढ़ाने वाले राजाओं के ये छः गुण है-सन्धि, विग्रह, यान (प्रस्थान), आसन, वैधीभाव और भाभय (११८) भयंकर युद्ध के शुरू हो जाने पर मरी हुई सेना वाले दोनों राजाओं का मैत्रीभाव सन्धि है। यह सन्धि अवधिवाली या अवधिरहित होती है। - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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