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- पश्नसुन्दरसूरिविरचित राज्ञाऽप्यासनदानादिसन्मानेन पुरस्कृतः । संभाष्य मधुरोल्लापैः कुशलप्रश्नपूर्वकम् ॥७३॥ पृष्टः प्रसन्नमनसा कस्मात् त्वमिह चागमः ? । स ऊचे श्रूयतां स्वामिन् ! यतोऽत्रागमनं मम ॥७॥ आस्ते कुशस्थलामिख्ये पत्तने पृथिवीपतिः । नाम्ना प्रसेनजिद् राज्यं पालयामास नीतिवित् ॥७५॥ तस्य पालयतो राज्यमन्यदा यमनेशितुः । सन्देशहारकोऽत्रागादूचे नरपतेः पुरः ॥७६॥ सप्रमाणं अणुः स्वामिन् ! कालिन्दीतटनीवृताम् । मण्डलाधिपतिः स्वीयप्रतापोत्तापिताऽहितः ॥७७॥ राना यमननामाऽस्ति भूपालप्रणतक्रमः । तेचे मन्मुखेनेदं सावधानमनाः शृणु ॥७८॥ या रूपस्य पगकोटिलावण्यतरुमञ्जरी । नाम्ना प्रभावतीत्यास्ते त्वत्सुता सा मदाज्ञया ॥७९॥
त्वयाऽऽशु दीयतां मह्यं स्वराज्यश्रेयसेऽन्यथा । सन्नद्धो भव युद्धे त्वं तेन मत्प्रभुणा द्रुतम् ।८०॥
(७३-७४) गजा ने भी उस दूत का आसन देकर सम्मान किया । मधुर सम्भाषण करके कुशल प्रश्नपूर्वक प्रसन्नचित्त हो राजा ने दूत से पछा-तुम यहाँ कैसे आये हो ? दूत ने कहा-स्वामिन् , जहाँ से मैं आया हू, (उसके बारे में) सुनिये । (७५) कुशलस्थळ नामक नगर में प्रसेनजित् नामक राजा है जो न्यायपूर्वक राज्य का पालन करता है। (७६-७८) एक बार राज्य का पालन करते हुए उस राजा प्रसेनजित् के सामने यमनदेश के. स्वामी का सन्देशवोहक दूत वहाँ आया और बोग-हे स्वामिन् ! सुनिये ! कालिन्दी नदी के तटवर्ती देशों का मण्डलाधिपति, अपने प्रताप से शत्रुओं को उत्तापित करने वाला. अनेक राजाओं के द्वारा नमस्कृत यमन नामक राजा है । उसने मेरे मुख द्वारा बो कहलवाया है, वह सावधान होकर सुनिये । (७९-८०) यदि अपने राज्य का कल्याण चाहते हो तो परमरूप लावण्यवाली प्रभावती नाम की जो तुम्हारी कन्या है उसे मेरी आज्ञा से मुझे दे दो, अन्यथा शीघ्र ही स्वामी यमन के साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ। .
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