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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य मूर्ध्नि मन्दारमालाऽस्य शुशुमे सुरढौकिता । तुषाराचलशृङ्गाने पतन्तीव सुरापगा ॥४९॥ ललाटपट्टमस्याऽभादर्धचन्द्रनिभं विभोः । लक्ष्म्याः पट्टाभिषेकाय तत्पीठमिव कल्पितम् ॥५०॥ भ्रुवौ विनीले रेजाते सुषमे सुन्दरे विभोः । विन्यस्ते वागुरे नूनं स्मरैणस्येव बन्धने ॥५१॥ नेत्रे विनीलतारेऽस्य सुन्दरे तरलायते । प्रवातेन्दीवरे साद्वरेफे इव रराजतुः ॥५२॥ कर्णावस्य विराजेते मणिकुण्डलमण्डितौ। स्वप्रभाजितयोद्धे सूर्येन्दयोरिव मण्डले ॥५३॥ . विभोर्वदनपंन तु सामोदश्वाससौरभम् । नेत्रपमाञ्चनव्याजादधौ पदमाधिराजताम् ॥५॥ मुखश्रीः सस्मिता तस्य स्फुरदन्तांशुदस्तुरा । रक्तोत्पलदलन्यस्तहीरपङ्क्तरिवाऽऽबभौ ॥५५।। तस्य तुङ्गायता रेजे नासिका सुन्दराकृतिः । लक्ष्येते यत्र वागूलक्ष्म्योः प्रवेशाय प्रणालके ॥५६॥ (४९) देवताओं द्वारा प्रदत्त मन्दार पुष्पों की माला उसके मस्तक पर इस प्रकार शोभित होती थी मानों हिमाचल के शिखर क अग्र भाग पर गिरतां हुई ममा नदी से। (५०) इस प्रभु का अर्धचन्द्र के समान ललाटपट्ट लक्ष्मीदेवी के पट्टाभिषेक के लिए मानो आसामः कल्पित किया गया हो। (५१) उस प्रभु के घने नीलवर्णवाले सुन्दर और सुषमः दोनोव (भौह) ऐसे शोभित थे मानो वे कामदेवरूप हिरन को बाँधने (पकडने) के लिए: फैलाई हई द्रो जाल हों। (५२) काली कीकावाले उसके सुन्दर चंचल लम्बेदों मेत्र: भ्रमरयुक्त और पवन से कम्पायमान दो नीलकमल की तरह शोभित थे। (५) मणिजटित, कुण्डली से अलंकृत उसके दो कान ऐसे शोभित थे मानो उन्होंने (दो कानों ने) सूर्य चन्द्र के दो गोलों को अपने तेज से जीत कर बाँध लिया हो । (५४) उस विभु पाश्व का श्वास से सुगन्धित प्रसन्न मुखकमल सुचारु नेत्रकमल के बहाने कमलों के अधिराज पद को धारण करता था । (५५) प्रकाशमान दन्तों की किरणों से देदीप्यमान स्मितयुक्त. उसकी मुखश्री लालकमल की पँखडी पर रखे गये हीरों की पंक्ति की भाँति सुशो-: मिथी। (५६) सुन्दर आकृतिवाली, उन्नत और लम्बा उसकी नासिका बड़ी हो शोमायमान थी मानो सरस्वती और लक्ष्मी के प्रवेश के लिए दो नालियाँ हों। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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