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________________ श्री पार्श्वनाथचरितमहाकाव्य 5 अस्नातपूतस्त्वं विश्वं पुनासि सकलं विभो ! । स्नापितोऽस्य तन्नूनं जगत्पावित्र्यहेतवे ॥ २०१ ॥ पूतस्त्वं जगतामेव पवित्रीकरणक्षमः । उद्योतवान् शशाङ्को हि जगदुद्द्योतनक्षमः ॥ २०२ ॥ अवाग्मनस लक्ष्यं त्वां श्रुतिराह स्म तन्न सत् । दिष्ट्या नः परमं ज्योतिस्त्वं दृग्गोचरतांमगाः ॥२०३॥ अभूषणोऽपि सुभगोऽनघीतोऽपि विदांवरः । अदिग्धोऽपि सुगन्धाप्रः संस्कारो भक्तिरेव नः ॥२०४॥ यथा ह्याकरजं रत्नं संस्काराद् द्योततेतराम् । गर्भजन्मादिसंस्कारैस्तथा त्वं विष्टपत्रये ॥ २०५ ॥ entsपि त्वमनेकात्मा निर्गुणोऽपि गुणैर्युतः । कूटस्थोऽथ न कूटस्थो दुर्लक्ष्यो लक्ष्य एव नः ॥ २०६॥ नमस्ते वीतरागाय नमस्ते विश्वमूर्तये । नमः पुराणकवये पुराणपुरुषाय ते ॥२०७॥ निःसंगाय नमस्तुभ्यं वीतद्वेषाय ते नमः । तितिक्षागुणयुक्ताय क्षितिरूपाय ते नमः ॥ २०८ ॥ । (२०१) हे विभो ! आप बिना स्नान के ही पवित्र सम्पूर्ण विश्व को पवित्र करते हो । जगत् को पवित्र करने के कारण मात्र से हो निश्चयतः आपको स्नान कराया गया है। (२०२) पवित्र आप ही संसार को पवित्र करने में समर्थ हैं कारण कि प्रकाशमान चन्द्रमा ही जगत् को प्रकाशित कर सकता है । ( २०३ ) श्रुति ने आपको वाणी तथा मन से अलक्षित कहा है, यह सत्य नहीं है । सौभाग्य से परम ज्योतिरूप आप हमें दृष्टिगोचर हुए हैं । (२०४). बिना आभूषणों से भी आप सुन्दर हैं, बिना पढ़े हुए भी आप श्रेष्ठ विद्वान् Jain Education International हैं, बिना लेंपन के भी आप सुगन्धित हैं तथा हमारी भक्ति ही आपका संस्कार है । ( २०५) जिस प्रकार खान से निकला हुआ रहा संस्कार से अत्यन्त चमकता है उसी प्रकार गर्भ, जन्म आदि संस्कारों से आप तीनों लोकों में द्योतित होते हैं । (२०६) एक होते हुए भी भाप अनेकात्म हैं, निर्गुण होते हुए भी आम गुणयुक्त हैं, कूटस्थ होते हुए भी आप अकूटस्थ है तथा दुर्लक्ष्य होते हुए भी आप लक्ष्य हैं । (२०७) वीतराग आपको नमस्कार हो, विश्वमूर्ति आपको नमस्कार हो, पुराणकवि तथा पुराणपुरुषोत्तम आपको नमस्कार हो । (२०८) आसक्तिरहित आपको नमस्कार हो, रागद्वेषरहित आपको नमस्कार हो, सहनशीलता आदि गुणों से युक्त पृथ्वीरूप आपको नमस्कार हो । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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