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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य सरस्युद्भिन्नमुकुला नलिनी · भ्रमरारवैः । । देवि ! प्रबोधयन्तीव पद्माक्षीं त्वामिनोदये ।।४।। ताम्रचूडध्वनिस्तारो दम्पत्योः श्लिष्टयोरयम् । दुनोतीव मतो नूनं सद्यो विरहसूचकः ॥४१॥ सरः शीकरवृन्दानां वोढा मन्दं ववौ मरुत् ।। प्रफुल्लपङ्कजोत्सर्पत्सौरभोद्गारसुन्दरः ॥४२॥ कल्याणि ! ते सुप्रभातम् अनघे ! वीरसूर्भव । इति प्रबोधयामासुः पाठेमङ्गलपाठकाः ॥४३॥ सुस्नातः प्रातरातोधमङ्गलध्वनिशंसितः । आजुहाव नृपः स्वप्नलक्षणेऽधीतिनो द्विजान् ॥४४॥ निर्णीतार्था द्विजाः प्राहुमहास्वप्नांश्चतुर्दश । जिनाम्बा चक्रिमाता वा पश्यतीमान् न चापरा ॥४५॥ देवी तीर्थकर वाऽथ चक्रिणं वा प्रसोष्यति । गजसंदर्शनात् पुत्रो गरीयान् । भविता तब ॥४६॥ . धुरन्धरो विभुत्वस्य वृषभालोकनाद् भुवि । सिंहाद्वीर्यातिशयवान् दामतो धर्मतीर्थकृत् ॥४७॥ (४०) विकसित कलो वाली सरोवरस्थ नलिनी प्रमरों के गुंजन से हे देवि ! कमलनयना तुम्हें सूर्योदय के समय मानों जगा रही है ! (४१) दोनों आश्लिष्ट (=आलिंगनबद्ध) दम्पत्ति के मन को यह मुर्गे के उच्च स्वर को ध्वनि शीघ्र ही मानों विरह के सूचनः रूप में पीड़ित कर रहो है। (४२) तालाब के जल के विन्दु समुदाय को वहन करने वाला मन्द मन्द पवन बहने लगा, जो पवन विकसित कमल पुष को उत्कट सुगन्धि को फैला कर सुन्दर बना रहा है । .(४३) हे निष्पाप , तू वीर पुत्र को उत्पन्न करने वाली हो। हे कल्याणि ! तुम्हारा यह सुप्रभात. हो! ऐसा कह कर मंगलपाठक स्तोत्रपाठों से उन्हें जागृत करने लगे। (४४) प्रातः स्नान करके, वाद्यादि मंगल को सुनकर राजा ने स्वप्न लक्षणों के जानने वाले ब्राह्मणों को बुलाया । (४५) ब्राह्मणों ने उन चौदह स्वप्नों के बारे में यह निर्णय दिया कि जिनदेव की माता अथवा चक्रवर्ती की माता ही ये स्वप्न देख सकती है, अन्य कोई नहीं। (४६) यह देवी सोधकर पुत्र को अथवा चक्रवर्ती पुत्र को उत्पन्न करेगी। हाथी के देखने से तुम्हारा, यह पुत्र श्रेष्ठ पुत्र होगा। (४७) बैल को देखने से पृथ्वी पर ऐश्वर्य में अग्रणी तथा सिंह दर्शन से पार को देखने से धर्मनाई का कई होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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