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________________ . पासुन्दरसूरिविरचित जितेन्द्रियेण प्रभुणा सद्धर्मपथवर्तिना । उमये शमितास्तेनाऽरयोऽब्देनेव रेणवः ॥१७॥ सन्धिर्वा विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः । षड्गुणास्तस्य साफल्यं न भेजुर्हतविद्विषः ? ॥१८॥ जातिरूपबलैश्वर्यमदौद्धत्यं न च क्वचित् । प्रशान्तस्यास्य . भूपस्य प्रसन्नस्याप्यवद्धत ॥१९॥ प्रासादस्थोऽन्यदा चक्री वातायनपथेन सः । . पश्यन्नभसि देवानां वृन्दं निर्गच्छदैक्षत ॥२०॥ तदर्शनसुविज्ञातजगन्नाथजिनागमः । सम्राट् ससैन्यः सद्भक्त्या श्रीजिनं नन्तुमागमत् ॥२१॥ भगवद्देशनां स्फारसारपीयूषसोदरां । श्रुत्वा तुष्टाव सन्तुष्टः स्पष्टवाचा जिनं कृती ॥२२॥ ॐ नमो विश्वरूपाय विश्वलोकेश्वराय ते । विश्वविद्यास्वतन्त्राय नमस्ते विश्वचक्षुषे ॥२३॥ त्वं विश्वदश्वा त्वं विश्वयोनिविश्वविदीश्वरः । जगत्पतिर्जगद्धाता जगबन्धुरनन्तदृक् ॥२४॥ (१७) अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाले, सन्मार्ग में प्रवृत्त उस राजा ने (भान्तर बाय) दोनों प्रकार के शत्रुओं को इस प्रकार शान्त कर दिया था जिस प्रकार वर्षा मिट्टी के कणों को शान्त कर देती है। (१८) शत्रुओं का नाश करने वाले उस राजा के सन्धि, विग्रह यान, आसन, द्वैधीभाव और आश्रय-ये षड्गुण सफल नहीं होते थे क्या ? (१९) शान्त और प्रसन्न इस राजा को कहीं पर भी जाति, सौन्दर्य, शक्ति और ऐश्वर्य के मद से जन्य उदण्डता बढ़ती नहीं थी। (२०) एक बार, अपने महल में बैठे उस राजा ने खिड़की से, आकाशमार्ग से निकरते हुए देवताओं के समुदाय को देखा । (२१) देवों के दर्शन से जगत् के स्वामी जिनेश्वर का आगमन अक' से जानकर, वह सम्राट् श्रीजिनेश्वर की भक्तिपूर्वक वन्दना करने हेतु सेना के साथ आया । (२२) (उस राजा ने) भगवान् जिनेश्वर के अमृत से परिपूर्ण उपदेश को सुनकर सन्तुष्ट और कूतार्थ होते हुए स्पष्ट वाणो से जिनेश्वरदेव की स्तुति की । (२३) विश्वस्वरूप, सब लोगों के प्रभु, भाप को, नमस्कार हो । विश्वविद्या में स्वतन्त्र और विश्व के (एकमात्र) चक्षुरूप आपको नमस्कार हो। (१४) हे प्रभो ! आप संसार के द्रष्टा हो, आप संसार को ज्ञान कराने वाले हो, भाप. संसार . को मानने वाले हो, आप ईश्वर हो । आप जगत्पति, जगतूधारक, जगत्बन्धु तथा अनन्त दृष्टि वाले हो । . AN Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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