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________________ अपभ्रंश साहित्य में कृष्णकाव्य नवजात कृष्ण को नन्दयशोदा के करो में वसुदेव से सौंपने का प्रसंग इस प्रकार भांकित किया गया है :. नंद के बचन सुन कर वसुदेवं गर्दैगर्दै कण्ठ से कहने लगा, 'तुम मेरा सर्वोत्तम इष्टमित्र, स्वजन, सेवक एवं बान्धव हो । बात यह है कि जो जो दुर्जेय, अंतुलबलं, तेजस्वी पुत्रों ने मेरे यहां जन्म पाया उन सब की कसने मेरे पास से कपटभाव से बचन ले कर हत्या कर दी। तब इष्टषियोग के दुःख से तंग हो कर इस बार मैं तुम्हारा आश्रय ढुंढता आया है। बारबार नन्द के करों को ग्रहण करते वसुदेव ने कहा-'यह मेरा पुत्र तुम्हे अर्पण कर रहा हूं। अपने पेट के पुत्र की नाई उसकी देखभाल करना । कस के भय से उसकी रक्षा करना । कंसने सभी पुत्रों की हत्या करके हमें बार बार स्लाया है । देवनियोग हो तो यह कच्चा उबरेगा । यह हमारा इकलौता है यह जान कर इसको सम्हालना ।' (५३-४)' ५३-१७ में नैमित्तिक बालकृष्ण के असामान्य गुणलक्षणों का वर्णन करता है।लोग बधाई देने को आते हैं। यहाँ पर जन्मोत्सव में ग्वालिनों के नृत्य के वर्णन में ब ने अग्नी समसामयिक ग्राम.ण वेशभूषा का कुछ संकेत दिया हैं: काँसु वि खबरी उप्परि नेत्ती कासु वि लोई लक्खारत्ती कासु वि सीसे लिंज धराली कोसु वि चुण्णी फुल्लडियालौं कासु वि तुगु मउड सुविसुटूठउ ओढणु वौडु कह मि मंजिउ सम्बई सीसे रत्तें वद्धा रीरी घडिय कडाकडि मुद्दा 'किसी के खंघे पर नेत्ती (नेत्र वस्त्र की साड़ी) थी तो किसी की लोई (कमली) गख गैसी रक्तवर्ण थी । सिर पर धारदार 'लिंज' (नीज १) थी तो किसी की धुनरौ पुलवाली थी । किसी को किसी का मौर उँचा और दर्शनीय था तो किसी की औदनी और बीड (एक प्रकार की कंचुकी १) मजीठी थे । सभी के सिर पर लाल (वस्त्रखण्ड ?) बंधा था और ये पीतल के कडे, कडियां भौर मुद्रिका पहनी हुई थीं।' नन्दयशोदा और गोपियों का दुलारा बालकृष्ण भागवतकार से लेकर असंभव कपियों का अंतरस काम्यविषये रहा है, जिसको पराकाष्ठो हम सूर में पाते हैं। तो धवस के मौका के वर्णन के दो कडक हम ५४ वीं सन्धि में से देखे : (२) - बहुलक्खणगुणपुण्णविसालउ जिम जिम विद्धि आइ सो वाल .. धृहहि (२) होइ णिरारिड चंगउ दिठिहिं अमियहिं सिंचइ अंगठ वतिय मोन्वणत्थ जा वाली जा जा कण्हु णियह गोवाली जेण मिसेण तेण मुहु जोवइ पुणु उच्छगि करिवि थणु दोवह १. धवल के हारवंश का परिचय यहाँ पर जयपुर के दिगम्बर अतिशय क्षेत्र भीमहावीरथी । संस्थान के संग्रह की हस्तप्रति के आधार पर दिया है । प्रति का उपयोग करने की मैनुमति के लिए मैं शोधसंस्थान की ऋणी हूँ । प्रति का पाठ अनेक स्थल पर माब । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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