________________
१८
म. विनयसागर
वह जिनमूर्ति का त्रिकाल पूजन करता था । प्रतिदिन दोनों समय प्रतिक्रमण करता था । स्वधी मात्र की महतो भक्ति करता था । श्रेष्ठ पर्यों में स्वयं पोषध करता था और पर्वो में पौषध करने वाले साधर्मिकों की वैथावृत्य ( सेवा ) करता था तथा प्रमुदित हृदय से स्वधर्मीवात्सल्य करता था।
गुरुमुख से महाराजा सम्प्रति, कुमारपाल भूपाल और महामन्त्री वस्तुपाल के उदार, श्रेयस्कर और सुकृतमय चरित्रों को सुनकर और पुनः पुनः स्मरण कर अपने हृदय-बन को सुकृतमय जल से सिंचन करता था ।
___ न्यायोपार्जित वित्त के द्वाग पेथड़ ने जिन-जिन श्रेष्ठ स्थानों, पर्वतों, नगरों और ग्रामों में नयनाहलादक जिनमन्दिरों का निर्माण करवाया उन-उन स्थानों का कल्याणकारी मूलनायक जिनेश्वरों के नाम के साथ मैं श्रद्धापूर्वक स्तवना करता है।
__ छठे पद्य के दो चरणों में कहा गया है कि पेथड़ ने वि० सं० १३२० में मण्डपगिरि ( माण्डवगढ ) में शत्र'जय तीर्थ के समान ही विशाल और प्रोत्तुंग आदिनाथ भगवान् का मन्दिर बनवाया ।
छठे पदय के तीसरे चरण से पद्याङ्क १५ तक में स्तवकार पेधड़ निर्मापित चैत्यस्थलों के नाम निर्देश के साथ मूलनायक जिनेश्वर देवों के भी नामोल्लेख करता है ।
अन्तिम सोलहवें श्लोक में स्तोत्रकार कहता है कि, पृथ्वी धर ने पर्वत-स्थलों, नगरों और ग्रामों में हिमशिखर की स्पर्धा करते हुए उत्तुंग शिखर वाले जिन मन्दिरों का निर्माण कर, जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई वे तथा और अन्य देवों एवं मनुष्यों द्वारा निर्मापित जो भी बिनचैत्य और प्रतिमाएं हैं उन सब को मैं नमस्कार करता हूँ।
इस स्तोत्र में उल्लिखित स्थल नाम और मूलनायक के नामों की सूची के साथ ही सुकृतसागर में प्रतिपादित स्थलनामों की सूची का तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है :मन्दिर संख्या मूलनायक नाम स्तोत्र में स्थल नाम सुकृतसागर में स्थल नाम आदिनाथ
मण्डपगिरि ( माण्डवगढ) माण्डवगढ नेमिनाथ निम्बस्थूर पर्वत निवस्थूर पर्वत पार्श्वनाथ निम्बस्थूर पर्वत की तलहटी निम्बस्थूर पर्वत की तलहटी उज्जयिनीपुर
उज्जयिनीपुर नेमिनाथ विक्रमपुर
विक्रमपुर पार्श्वनाथ मुकुटिकापुरी
मकुडी आदिनाथ
(मकुडी ) मल्लिनाथ
विन्धनपुर पार्श्वनाथ
आशापुर आदिनाथ
घोषकीपुर शान्तिनाथ अर्यापुर
ज्यापुर नेमिनाथ धारानगरी
धारा वर्धनपुर • आदिनाथ चन्द्रकपुरी
चन्द्रावती पार्श्वनाथ
बीरापुर
नाम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org