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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ५. कोष्ठ की संख्या मंदिरों एवं मूर्तियों की संख्या का संकेत देती है। ६. श्वेताम्बर सम्प्रदाय में मांगलिक स्वप्नों की संख्या १४ बतायी गयी है। मत्स्य युगल,
सिंहासन एवं नागेन्द्र भवन का श्वेतांबर सूची में उल्लेख नहीं है । श्वेतांबर सूची
में सिंहासन के स्थान पर सिंहध्वज का उल्लेख है । ७. कृष्णदेव, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ५५. ८. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, ब्रुन, क्लाज, “दि फिगर ऑव टू लोअर रिलिपस भान दि
पार्श्वनाथ टेम्पल ऐट खजुराहो" आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि स्मारक प्रथ,
बम्बई, १९५६, पृ० ७-३५. ९. देवयुगलों की कुछ मूर्तियाँ मन्दिर के अन्य भागों पर भी हैं। .:. .. १०. ये मूर्तियाँ स्पष्टतः हिन्दू मन्दिरों पर उत्कीर्ण आलिंगन मुद्रा में देवयुगल मूर्तियों से
प्रभावित हैं । वैसे पूर्व मध्यकाल में जैन धर्म के प्रति सामान्य संसारी व्यक्तिओं को आकर्षित करने के उद्देश्य से जैन धर्म ग्रंथों में इस प्रकार के कुछ उल्लेख प्राप्त होते हैं। हरिवंशपुराण (७८३ ई०) में एक स्थल पर उल्लेख है कि जिन मन्दिर में एक सेठ ने संपूर्ण प्रजा के कौतुक के लिए कामदेव और रति, की भी मूर्ति बनवायी। यह भी उल्लेख है कि उपयुक्त जिन मन्दिर कामदेव के मन्दिर के नाम
से प्रसिद्ध है और कौतुकवश आये लोगों के लिए जिन धर्म की प्राति का कारण का है। हरिवंशपुराण (जिनसेनकृत) सर्ग २९, श्लोक १-५. .
(सं० पन्ना लाल जैन, ज्ञानपीठ मूर्ति देवी जैन ग्रंथमाला, संस्कृत ग्रंथांक २७, . वाराणसी, १९६२, पृ. ३७८). ११. तिवारी, मारुतिनन्दन प्रसाद, “ए नोट आन ऐन इमेज ऑव राम ऐण्ड सीता आन
दि पार्श्वनाथ टेम्पल, खजुराहो”, जेन जर्नल, खं०८, अ९.१, पृ० ३०-३२. १२.
लक्ष्मण मन्दिर की उत्तरी भित्ति की एक मूर्ति में मयूर पोचिका से युक्त मुण्डित मस्तक वाले निर्वस्त्र जैन साधु के वक्षःस्थल में श्रीवत्स चिहन भी उत्कीर्ण है। जैन साधु के लिंग को नीचे बैठी एक स्त्री आकृति मुख में प्रविष्ट कराये हुए है, जो मुख
मैथुन का भाव व्यक्त करता है । १३. केवळ चार उदाहरणों में लांछन स्पष्ट है । १४... बाहुबली को उत्तर भारत में प्राचीनतम ज्ञात मूर्ति जूनागढ़ संग्रहालय में है। द्रष्टव्य,
तिवारी, मारुतिनन्दन प्रसाद, "ए नोट ऑन सम बाहुबली इमेजेज फ्राम नार्थ इण्डिया"
-ईस्ट एण्ड वेस्ट, ख०२३, अ०३-४, सितम्बर-दिसम्बर १९७६, पृ.३४७-५३ १५. हरिवंशपुराण, ११. १०१. १६. कृष्णदेव, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ६०. १७. वही, पृ. ५८.
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