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खजुराहो की जैन मूर्तियां गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली की एक मूर्ति है । यह उत्तर भारत में बाहुबली की दुसरी प्राचीनतम ज्ञात मूर्ति है" । बाहुबली कायोत्सर्ग मुद्रा में सिंहासन पर मिस्त्र खडे है । बाहुबली के साथ जिन मूर्तियों की सामान्य विशेषताएं, यथा सिंहासन, चामरपर सेवक, प्रभामण्डल, उड्डीयमान गन्धर्व, धर्मचक्र एवं गज आकृतियां, प्रदथित :हेलो बाहुबली को जिनों के समान प्रतिष्ठा प्रदान किये जाने का सूचक है । इस प्रकृति को देवगढ़ में (मन्दिर-११, १२ बों शती ई०) बाहुबली के साथ यक्ष-यक्षी युगल को सम्बद्ध करके पूर्णता प्रदान की गयी। खजुराहो में बाहबली के मस्तक के ऊपर त्रिछत्र के स्थान पर एक छत्र प्रदर्शित है । बाहुबली के शरीर से माधवी लिपटी है और वक्षःस्थल पर छिपकली और वृश्चिक उत्कीर्ण हैं । बाहुबली के पावों में दिगंबर परम्परा के अनुरूप ही दो विद्यापरियों को बाहुबली के शरीर से लिपटी हुई माधवी को हटाते हुए दिखाया गया है। घण्टई मंदिर
कृष्णदेव ने स्थापत्य, मूर्तिकला और लिपि सम्बन्धी साक्ष्यों के आधार पर घण्टई मन्दिर को दसवीं शती ई० के अंत में निर्मित माना है। वर्तमान में इस मन्दिर के मण्डप और अर्धमण्डप का ही कुछ भाग शेष बचा है । मन्दिर के उत्तरंग पर ललाटबिंब के रूप में अष्टभुज चक्रेश्वरी की मूर्ति उत्कीर्ण है, जो मन्दिर के ऋषभनाथ को समर्पित रहे होने की सूचक है। उत्तरंग पर द्विभुज नवग्रहों एवं गोमुख (८) की भी मूर्तियां है । गोमुख आकृतियों की भुजाओं में पद्म और घट है। प्रवेशद्वार पर १६ मांगलिक स्वप्न और गंगा-यमुना की संबाहन मूर्तियां हैं । अर्धमण्डप की छत तथा मण्डप के स्तम्भों पर जिनो एवं बैन भाचार्यों को सामान्यतः शास्त्रार्थ करते हुए दिखलाया गया है । आदिनाथ मंदिर
योजना, निर्माण शैली एवं मूर्तिकला को दृष्टि से आदिनाथ मन्दिर खजुराहो के वामन मन्दिर (गभग १०५०-७५ ई.) के निकट हैं। कृष्णदेव ने इसी आधार पर मन्दिर को ग्यारहवीं शती ई० के उत्तरार्द्ध में निर्मित माना है । गर्भगृह में ११५८ की काले पल्लर की ऋषभनाथ की मूर्ति स्थापित है । ललाटचिंब पर ऋषभनाथ की यक्षी चक्रेश्वरी भामूर्तित है।
मन्दिर के मण्डोवर पर मूर्तियों की तीन समानान्तर पंक्तियां हैं। ऊपर की पंक्ति में गरधर्व, किमार एवं विद्याधर मूर्तियां हैं। मध्य की पंक्ति में चार कोनों पर त्रिभंग में आठ चतुर्भुज गोमुख आकृतियां उत्कीर्ण हैं, जो सम्भवतः अष्ट वासुकियों का चित्रण है" । इनके करों में वरदमुद्रा, चक्राकार सनाल पद्म (या परशु), चक्राकार सनाल पद्म एवं जलपात्र है"। निचली पंक्ति में अष्ठदिक्पालों की चतुर्भुज मूर्तियां है । इनके अतिरिक्त मनभावन असरामों एवं शार्दूल की भी कई मूर्तियां बनी है । दक्षिणी अधिष्ठान पर ललितमुद्रा में आसीन चन क्षेत्रपाल की एक मूर्ति है। क्षेत्रपाल का वाहन श्वान् है, और उसके करों में गदा, नकुळक, सर्प एव' फल प्रदर्शित है। सिंहवाहना अंबिका की तीन और गरुडवाहमा चरी की दो मूर्तियां है।
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