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खजुराहो की जैन मूर्तियां
खजुराहो में संप्रति चार प्राचीन जैन मन्दिर एवं कई नवीन जैन मन्दिर (३२) है। प्राचीन जैन मन्दिर पार्श्वनाथ, घण्टई, शांतिनाथ एवं आदिनाथ मन्दिर हैं । इन प्राचीन जैन मन्दिरों के उत्तरंगों के अतिरिक्त हमें खजुराहो में १७ से अधिक ऐसे उत्तरंग भी मिले हैं जिनपर जिनों तथा चक्रेश्वरी, अम्बिका एवं पद्मावती जैसी जैन यक्षियों की मूर्तियां बनी है। ये उत्तरंग निःसंदेह चंदेल काल में उपर्युक्त चार मन्दिरों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य जैन मन्दिर के निर्माण की सुचना देते हैं । ये मन्दिर संभवतः आकार में छोटे रहे होंगे । खजुराहो के जैन मन्दिरों का समूह खजुराहो का पूर्वी देव मन्दिर समूह कहलाता है । संप्रति केवल पार्श्वनाथ एवं आदिनाथ मन्दिर ही पूरी तरह सुरक्षित है । घण्टई मन्दिर के अतिरिक्त अन्य सभी प्राचीन एवं नवीन जैन मन्दिर एक विशाल परकोटे में स्थित हैं।
खजुराहो को सम्पूर्ण जैन शिल्प-सामग्री दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है, और उसकी समय सीमा लगभग ९५० से ११५० ई० है। जिनों की निर्वस्त्र प्रतिमाएं मन्दिरों के प्रवेश द्वारों पर १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन खजुराहो के जन शिल्प की विशेषताएं है। ज्ञातव्य है कि ये विशेषताएं केवल दिगंबर संप्रदाय से ही सम्बद्ध है । प्रारंभ में हम खजुराहो के प्राचीन जैन मन्दिर की मूर्तियों का प्रतिमा निरूपण करेंगे। तदुपरान्त खजुगहो की शेष शिल्प सामग्री का विवेचन करेंगे। अपने अध्ययन में जिनों एवं यक्ष-यक्षी युगलों के निरूपण पर हम विशेष बल देंगे ।
पार्श्वनाथ मन्दिर ___ पार्श्वनाथ मन्दिर जैन मन्दिरों में प्राचीनतम और स्थापत्यगत योजना एवं मूर्त अलंकरणों को दृष्टि से सबकृष्ट एवं विशालतम है । कृष्णदेव ने पार्श्वनाथ मन्दिर को धग के शासनकाल के प्रारम्भिक दिनों (९५०-७० ई०) में निर्मित माना है पार्श्वनाथ मन्दिर मूलतः प्रथम जिन ऋषभनाथ को समर्पित था । गर्भगृह में स्थापित १८६० ई. की काले प्रस्तर की पार्श्वनाथ मूर्ति के कारण ही कालान्तर में इसे पावेनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाने लगा । गर्भगृह में मूल प्रतिमा के सिंहासन और परिकर सुरक्षित हैं । मूल प्रतिमा की पीठिका. पर ऋषभनाथ के वृषभ लांछन और यक्ष-यक्षो, गोमुख-चक्रेश्वरी, उत्कीर्ण है। मूलनायक के पावों में सुपार्श्वनाथ ओर पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तिया सुरक्षित हैं । अर्धमण्डप के ललाटबिंब पर भी चक्रेश्वरी की ही मूर्ति बनी है।
मन्दिर को बाह्य भित्ति पर तीन समानान्तर पंक्तियों में देवमूर्तियां उत्कीर्ण है। प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से केवल निचली दो पंक्तियों की मूर्तियाँ ही महत्व को है। ऊपरी पंक्ति में केवल पुष्पमाल से युक्त विद्याधर युगल, गंधर्व एवं किन्नर-किन्नरियों की उड्डोयमान आकृतियां हो उत्कीणित है । मध्य को पंक्ति में विभिन्न देवयुगलों, लक्ष्मी एवं लांछनरहित जिनों की मूर्तियां बनी है। निचली पंक्ति में जिनों, अष्ट दिग्पालों, देवयुगलों (शक्ति के साथ आलिंगनमुद्रा में), जैन यक्षी अंबिका, शिव, विष्णु, ब्रह्मा एवं विश्व प्रसिद्ध अप्सराओं की मूर्तियां है । ये अप्सरा मूर्तियां स्त्री सौन्दर्य की साकार अभिव्यक्ति हैं । मन्दिर की दर्पण देखती, पत्र लिखती, पैर से कांटा निकालतो, पैर में पायजेच बांधती कुछ अप्सरा
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