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जैन यक्षी अजिता या रोहिणी का प्रतिमानिरूप :
(११) देवी लोहासना रोहिण्याख्या चतुर्भुजा । वरदाभयहस्तासौ शंखचक्रोज्वलायुधा ॥
प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. १८ । . (१२) प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १५७; प्रतिष्ठातिलकम् ७. २, पृ० ३४१; अपराजितपृच्छा २२१. १६ ।।
(१३) महाविद्या रोहिणी की एक भुजा में शंख भी प्रदर्शित है ।
(१४) द्रष्टव्य, रामचन्द्रन, टो० एन०, तिरुपत्तिकुणरम ऐण्ड इट्स टेम्पलूस, बुलेटिन मद्रास गवर्नमेन्ट म्यूजियम, खं० १, भाग ३, मद्रास, १९३४, पृ० १९८ ।
(१५) श्वेताम्बर स्थलों पर महाविद्याओं को विशेष लोकप्रियता, यक्षियों की स्वतन्त्र मूर्तियों की अल्पता एवं अजितनाथ की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का न उत्कीर्ण किया जाना इस पहचान में बाधक है।
(१६) देवगढ़ की मतियों पर श्वेतांबर परम्परा की प्रथम महाविद्या रोहिणी का प्रभाव है। गोवाहना रोहिणी महाविद्या की भुजाओं में बाण, अक्षमाला, धनुष एवं शंख प्रदर्शित
(१७) द्रष्टव्य, मित्रा, देवला, शासनदेवीज इन दि खण्डगिरि केन्स, जर्नल एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता), ख० १, अं० २, १९५९, पृ० १२८ ।
(१८) वही पृ० १३० । (१९) वही पृ० १३३ ।
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