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श्रीमत्सूराचार्यविरचितं दानादिप्रकरणम्
प्रथमोऽवसरः [४-१] - - - - - - - - यतालोदं (१) जातिरमला सुरूपं सौभाग्यं ललितललना भोग्यकमला । चिरायुस्तारुण्यं बलमविकलं - - - - - - - - - - - - - - - - - - पंत इदम् ॥१७॥ भुवनतिलककल्पे यत् कुले केऽप्यनल्पे । त्रिभुवनजनवन्ध प्राणभाजोऽनवद्ये । धनकनकस - - - - ------ - - - - - - - - - - कल्पद्रमस्य ॥१८॥ विटंन्ति न हि वेदनां गदमुद्भवामाकुलाः कुलीनपुरुषा इवापरपुरन्ध्रिजातां रतिम् । यद ------------ तर्जितं - - - - - - - - विमलधर्मविस्फुर्जितम् ॥१९॥ यज्जायन्ते जन्तवो जातु जातो संशुद्धायां सिद्धसिद्धाविवोच्चैः ।
---- -------॥२०॥ [४-२] अदर्पः कन्दर्पो रहयति रतिं नातिभयतो निकामं कामिन्यः कमपि कमनीयं च कमितुम् । ----- ---- ---- ---- - - - - - - स्फुरितमवसेयं स्फुटमहो ॥२१॥
शृङ्गारस्येव भृङ्गारो लीलागारं रतेरिव । . सुखानामिव सत्खानिः सुम - - - - - - ॥२२॥
-- - - - - - - - - - स्येव वर्तिनी। क्रीडाधामेव धर्मस्य निर्माणमिव नर्मणाम् ॥२३॥ १. पत्रत्रयं नोपलभ्यते ।
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