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________________ संपा. र. म. शाह नाण अस्थमण-तावेण विण दिणयरो । नाण विण-खार गुण-रयण-रयणायरो ॥५ नाण पूएहु अच्चेहु बहु-भत्तिणा । नाण जाणेह नर नारि निअ-सैत्तिणा । नाण उवगरण कारण बहु-भत्तिणा । ठवणिया कवलिया पुट्ठिया पुत्थिया ॥६॥ --- ---------- नाण नव-निहि-वइरित्तु दैसमो निही । अनिल-जल-जलण-चोरेहिं नव लंघए । जंपयंताण निच्चं पि परिवड्ढए ॥७॥ बहुय-भव-गहण-संचिणिय-कम्मिंधणं । नाण जलण व्व निदहइ इह तक्खणं । नाण-पंचमिहिं जो नाण आराहए । तामु सयलं पि मण-वंछिअं 'साहए ॥८॥ नाण सुह कारए दुक्ख निव्वारए । नाण जस देई अवजस्स उत्तारए । नाण हणि मोह पडिबोहु उप्पायए । नाण बहु-लद्धि-सिद्धी-मई जायए ॥९॥ दुरिय दारिद्द दोहग्ग निन्नासए । सुक्ख-सिवमुग्ग-सोहग्ग उल्लासए । तत्त सम्मत्त चारित्त सुह-शाणयं । केवलं नाण निव्वाण नाणत्तयं ॥१०॥ इय सुय-नाणह, भुवण-पहाणह, गुण-संथवु जे नर करहिं । ते सयल वि मंगल, पाविहि निम्मल, भव-सायर दुत्तर तरहिं ॥११॥ ॥इति श्री ज्ञानपंचमी स्तवनं ॥ १. भत्तणा २. सत्तणा ३. अहीं अक चरण खूटे छे. ४. दशमो ५. लप्पए ६. सहए ७. देय ८. सुख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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