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________________ Jain Education International ४. सोमकृत 'रंभा - शुक संवाद' कुकुंम केसर मोतो महवटउ, सईथा सौंदूर भरीटो पइसी, भमहि धनुष धरी कुच खेडां, स्वर्ग थको सुक भणीय घसी रे, नयण बाण मंकइ अपछरा, कुण सुभट ते साहमु रहइ ? लोचन अणी तणे ऊपाडिउ, इंद्र अम्हारु विनय विहइ रे. १ द्रुपद नयण ० राम रगाउलि हरि हथुटउ, जगपति जीवरखी य जाणि, हू सुकदेव कहि वस्ति नावू, रंभा भूरि भमई तिहां जाउ. ज्ञानगदा केसि अभ्यंतरि, सारइ तुं चूकसि घरठाम. हूं सुकदेव जीता कोड, ० पाय पडइ जप छोडि. वेणीदंड कनकं मणि सुंदर, कुंडलचक्रई अहंकार शब्द तणा ऊथडंया, जोगी नयण ० क्षमा खडग, भाव ते भालु, तप बे डंका छ कुरु बाण, मार धनुष बुद्धि बाणाउलि, रंभादलि पाडं भंगाण, हूं सुकदेव० सिर वाजइ पंच तूर, सुरतसंग्रामि पडहं बहु सूर. नयण ० काम क्रोध लोभ मोह माया, मद मच्छर जीतु अहंकार, क्षुधा त्रिषानी राखि वारी, इंद्री पंच करिउ परिहार. हूं सुकदेव • ऊगटी कुसम अंग सुरवाल, त्रिवली नक्षत्र सूर पटु, चोली चोर लिमेहिल करंतां, अम्हनइ जीपइ कुण कटु रे ! न्यण ० चुरासी आसण वसि कीधां, इडा पिंगला सुखमना जेह, सुनिमंडलनां वाजां समरउं, अम्हे दि पूरण किसउ सनेह ? हूं सुकदेव० कंकण चूडी नय कटिमेखला, नूपर अधुर अमीय तणा जे मोहिया, कस्तूरीपात्र, महिगंधा मोहिउ परासर, अम्हे कहूं सुर समरइ, पन्नग अम्ह पूछई, अवर बापडा केही मात्र ? नयण ० For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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