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________________ Review प्राकृत स्वयं-शिक्षक, खण्ड १ ले० डॉ प्रेम जयपुर, १९७९ | मूल्य रु. २०००० (सजिल्द) रू० 994 सुमन जैन, प्रका० १५००० ( पेपरवर्क) । प्राचीन भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, कला इत्यादि का मर्म पाने के लिए जितनी आवश्यकता संस्कृत भाषा के अध्ययन की है उतनी ही प्राकृत भाषा के अध्ययन की है यह अब सर्वविदित है । प्राकृत के पठन-पाठन का प्रबंध विश्वविद्यालयों की उच्चतम कक्षाओं में बढ़ता जा रहा है यह हर्ष का विषय है। इस संदर्भ में प्रस्तुत पुस्तक प्राकृत अध्येताओं के लिए निःशंक अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी । प्राकृत भारती, डॉ. जैन ने प्राकृत शिक्षण के लिए यहाँ उचित ढंग से नवोन भाषावैज्ञानिक शैली का प्रयोग किया है। प्राचीन परंपरा में प्राकृत संस्कृत में से निष्पन्न हुई है ऐसी मान्यता थी। इस मिथ्या धारणा बनाने में कतिपय प्राकृत व्याकरणकारों का मा योगदान था और इसी वजह से आज तक प्राकृत भाषा संस्कृत के आधार से ही पढी पढाई जा रही थी। लेखक ने शायद प्रथम बार ही संस्कृत को सहाय के बिना भी प्राकृत भाषा पढाई जा सकती है इस का दृष्टांत पुस्तक के रूप में पेश किया है। लेखक इस के लिए बधाई के पात्र है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने ८९ पाठों में क्रमश: सरल वाक्यों के प्रयोग से प्राकृत व्याकरण का ज्ञान हिन्दो माध्यम से दे दिया है। केवल हिन्दी भाषा जानने वाला पाठक भी अपने आप इस पुस्तक की सहाय से प्राकृत का अध्ययन कर सके इस तरह की सरलतम शैटी लेखक ने अपनाई है। इन पाठों के अन्त में प्राचीन अर्वाचीन प्राकृत साहित्य से चून कर मद्य-पद्य-संग्रह के रूप में १० पाठ सरल शब्दार्थ के साथ जोड दिये गये हैं, जो विद्यार्थी को प्राकृत साहित्य का परिचय कराने में उपयोगी सिद्ध होंगे । Jain Education International पूरी समग्र पुस्तक में कही भी क्लिष्टता न आ जाय इसके लिए लेखक ने सावधानी बरती है । छाई आदि भी सुन्दर हैं। आशा करते है इस का द्वितीय खण्ड भी शीघ्र प्रकाशित हो । For Personal & Private Use Only -र. म. शाह www.jainelibrary.org.
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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