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Läțiya Apabhranía बो करि संघीउ भंमा सूमेसर-नंदण एहु सु गडि दाहिमउ खणइ खुद्दइ सइंभरिवणु । फुड छडि न जाइ इहु लुब्भिउ वारइ पलकें खल गुलह । नं जाणंउं चंद-बलंद्दिउं कि न विट्टइ इह फलह ॥
__(पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृथ्वीराजपाध, पृ० १८६०) अगहु म गहि दाहिमउ रिपुराय-खयंकर कडु मंत्रु मम ठवंउ एहुं जंबूय मिलि जग्गरु । सह नामा सिक्खवलं जइसिक्खिविउं बुज्झइं.
जंपइ चंद-बलिद्दु मज्झ परमक्खर सुज्झइ । • पहुं पहुविराय सइंभरिधणी सयंभरि सउणह संभरिसि .. कईवास विआस विसट्ठविणु मच्छिबंधि बद्धउ मरिसि ॥ ..
(पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृथ्वीराजप. ८) त्रिण्हि लक्ष तुखार सबल पाखरीअई जसु हय. चऊदसई मयमत्त दंति गज्जति महा-मय । वीस लक्ख पायक सफर-फारक्क घणुद्धर लहसडु अरु वलु जान संख कु जाणइ तांह पर । . छत्तीस लक्ष नराहिवद विही-विनडिउ हो किम भयउ जयचंद न जाणउ जल्हु कइ गयउ कि मूउ कि धरि गयउ ।
(पुरातनप्रबन्धसंग्रह, जयचन्दप्रबन्ध, पृ० ८८)
जइतचंदु चक्कवइ देव तुह दुसह पयाणउ धरणि धसवि उद्धसइ पडइ रायह भंगाणउ । सेसु मणिहिं संकियउ मुक्कु हय-खरि सिरि खंडिउ तुट्टउ सो हर-धवलु धूलि जसु चिय तणि मंडिउ । उच्छलीउ रेणु ज सम्गि गय सुकवि जल्हु सच्च चवइ वग्ग इंदु बिंदु भुयजुअलि सहस नयण किण परि मिलइ ।।
(पुरातनप्रबन्धसंग्रह, जयचन्दप्रबन्ध, पृ. ८८-८९)
Notes 1. Singhi Jaina Series, No 2. 2. These are given here at the end of the main text of the paper. 3. Prthviraja-rāsau. 1964. For some of the numerous discussions and controversies
about various aspects of PR. see Pythviraj Rāso Ki Vivecana, 1959, Rajasthan University. edited by K. Sambaziva Sastri, Trivandrum Sanskrit Series, No, 104, 1934, p 92-93, Sambhodhi 7.1-4
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