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Reviews
The author has given information of the monks and nuns and also of the Śravaka and Sravikas of his times, Jayācārya died in V. S. 1938,
Dalsukh Malvania
दसवेयालियसुत्तं, उत्तरज्झयणाईं आवरसयसुत्तं चः सं० मुनि पुण्यविजयजी तथा पं. अमृतलाल भोजक, जैनागमग्रन्थमाला, नं. १५, महावीर जैन विद्यालय, बंबई, मु०५००० ।
इन तीनों ग्रन्थों की प्रशिष्ट वाचना अनेक हस्त प्रतों के आधार पर तैयार की गई है । दशवैकालिक और आवश्यकका संपादन पू. मुनि श्री पुण्यविजय जी ने किया है और उत्तराध्ययन का संपादन पं. अमृतलाल ने किया हैं। विशाल शब्द सूचो इसकी विशेषता है । तथा पाठान्तरों की चर्चा भी विस्तार से की गई है ।
दलसुख मालवणिया राजस्थान का जैन साहित्यः संपादक मंडल - श्री अगरचंद नाहटा, डो, नरेन्द्र भानावत, डो. कस्तूरचंद कासलीवाल, डो. मुलचंद सेठिया तथा महोपाध्याय विनयसागरः प्रकाशक - श्री देवेन्द्रराज मेहता, सचिव, प्राकृत भारती, जयपुर, १९७७ मू० ३०=०० |
राजस्थान सरकार द्वारा गठित भ. महावीर २५००वाँ निर्वाण महोत्सव समिति द्वारा साहित्य प्रकाशन योजना के अन्तर्गत इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ है । यद्यपि अन्थनाम " राजस्थान का जैन साहित्य" है तथापि केवल राजस्थान में ही निर्मित जैन साहित्य का परिचय दिया है ऐसी बात नहीं है । कहा जा सकता है कि समग्ररूपसे जैन साहित्य का परिचय देने का यह एक अच्छा प्रयास है। इसमें विद्वान लेखकों ने प्राकृत जैन साहित्य, संस्कृत जैन साहित्य, अपभ्रंश जैन साहित्य, राजस्थान जैन साहित्य और हिन्दी जैन साहित्य का परिचय दिया गया है । इतना ही नहीं परिशिष्टो में राजस्थान का जैन लोक साहित्य, राजस्थान के जैन ग्रन्थ संग्रहालय, राजस्थान के जैन शिलालेख, जैन लेखन कला जैसे विषयों का सन्निवेश तज्ज्ञों द्वारा हुआ है । अंत में ग्रन्थों की, व्यक्ति और ग्रन्थकारों की तथा ग्राम-नगरों की सूचियाँ दी गई है जो ग्रन्थ की मूल्यवत्ता को बढाती है ।
दलसुख मालवणिया
Kalpasutta with Hindi Tra. by Mahopadhyaya Vinayasagar who is also the Editor of this volume, Eng tr. by Dr. Mukunda Lath and notes of paintings by Dr. (Smt.) Chandramani Singh. Published by Shri D. R. Mehta, secretary, Prakrit Bharati, Jaipur, 1977, price Rs. 125.
Prakrit Bharati should be given credit for reproducing 36 illustrations in original colours from the ms, copied in V, S,