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घणेश्व के महावीर की...अध्ययन
के विपरीत निर्वस्त्र नहीं प्रदर्शित किया गया है। करण्डमुकुट से अलंकृत निऋति के दाहिने पार्श्व में वाहन रूप में एक लेटी पुरुष आकृति को आमूर्तित किया गया है । पारम्परिक बाहन श्वान् के स्थान पर नरवाहन का अंकन निति चित्रण की दुर्लभ विशेषता है। देवता की दोनों भुजाएं जानु पर स्थित हैं। मकरवाहन से युक्त वरुण का दाहिना कर जानु पर स्थित है जबकि बायें में पारा प्रदर्शित है। मृगवाहन से युक्त वायु की दाहिनी भुजा में ध्वजदण्ड' प्रदर्शित है और बायीं जानु पर स्थित है। कुबेर की तुन्दीली आकृति के पृष्ठभाग में वाहन गज उत्कीर्ण है। देवता की दोनों भुजाओं में एक लम्बा धन का थैला प्रदर्शित है। थैले के मुख भाग से मुद्राओं (निधियों) को निकलते हुए दिखाया गया है। मुद्राओं का थैले से गिरते हुए अंकन इस मूर्ति की दुर्लभ विशेषता है । जटामुकुट से अलंकृत ईशान के दाहिने पार्श्व में वृषभ वाहन उत्कीर्ण है । जटामुकुट के अग्रंभाग में अधचन्द्र का अंकन उल्लेखनीय है। देवता की बायीं भुजा जानु पर स्थित है, और दाहिनी में त्रिशूल स्थित है, जिसके चारों ओर सर्प लिपटा है। शेष दो दिक्पालो- अनन्त और ब्रह्मा-को मन्दिर के जंघा के स्थान पर सुखमण्डप के अर्धस्तम्भों पर उत्कीर्ण किया गया है। दोनों आकृतियां रथिकाओं के स्थान पर पद्म अलंकरण से युक्त कोष्ठकों पर अवस्थित हैं। मुखमण्डप के दक्षिण पार्श्व की अनन्त मूर्ति के मस्तकपर पांच सर्पफणों का घटाटोप प्रदर्शित है। देवताकी दाहिनी भुजा जानु पर स्थित है और बायीं में सम्भवतः पद्म प्रदर्शित है। बाम पार्श्व की ब्रह्मा की त्रिमुख आकृति को श्मशु एवं जटामुकुटसे सुशोभित दरशाया गया है। देवता की तुन्दीली आकृति के पृष्ठभाग में ज्वालामय प्रभामण्डल चित्रित है । देवता की दक्षिणी भुजा जानु के नीचे लटक रही है और वाम किसी वृत्ताकार वस्तु के ऊपर स्थित है । वृत्ताकार वस्तु की पहचान सम्प्रति सम्भव नहीं है। ___अब हम गूढ़मण्डप और मूल प्रसाद के अधिष्ठान की रथिकाओं में उत्कीर्ण मूर्तियों (२४४१६.४") का उल्लेख करेंगे। सभी मूर्तियां चतुर्भुज यक्ष- यक्षियों का चित्रण करती है। पश्चिमी अधिष्ठान की थका में गोमुख यक्ष की तुन्दोली आकृति ललितमुद्रा में भद्रासन पर विराजमान है । यज्ञोपवीत और हार से सुशोभित यक्ष का वृषमुख आधुनिक समय में जोड़ा गया प्रतीत होता है । यक्ष की भुजाओं में कमण्डलु, सनालपद्भ, सनालपद्म और वरदमुद्रा प्रदर्शित है। यक्ष भूर्ति के शीर्ष भाग में एक लघु जिन आकृति उत्कीर्ण है। उपर्युक्त मूर्ति के निरूपण में किसी उपलब्ध लाक्षणिक ग्रंथ के निर्देशों का निर्वाह नहीं किया गया है।" मूत अंकनों में गोमुख यक्ष को सामान्यतः परशु एवं पाश से युक्त प्रदर्शित किया गया है। दक्षिण अधिष्ठान पर लम्बी दाढी से युक्त ब्रह्मशांति यक्ष की तुन्दीली आकृति पद्मासन पर ललितमुद्रा में विराजमान है । जटामुकुट एवं ज्वालामय भामण्डल से युक्त यक्ष के करो में वरदाक्ष , चक्राकार पद्म, छत्र एवं जलपात्र चित्रित है। कालान्तर में श्वेताम्बर कलाकेन्द्रों पर अत्यधिक लोकप्रिय ब्रह्मशांति यक्ष का सम्भवतः यह प्राचीनतम ज्ञात मूर्त अंकन है । पूर्वी अधिष्ठान पर सर्वानुभूति या कुबेर) यक्ष आमूर्तित है। ज्वालामय कांतिमण्डल से युक्त तुन्दीली यक्ष आकृति की भुजाओं में फल, पाश, अंकुश एवं फल प्रदशित है। गजवाहन एवं धन के थैले की अनुपस्थति में भी इस यक्ष की निश्चित पहचान सर्वानुभूति यक्ष से की जा सकती है। इस पहचान का आधार कुंभारिया (गुजरात) एवं दिलवाड़ा (राजस्थान : विमलवसही एवं लूणवसही) के श्वेताम्बर मन्दिरों से प्राप्त सानुभूति यक्ष की