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अनुबन्धफलगर्भा श्रीगौतमस्तुतिः ।
संपादक
पं. बाबुभाई सवचंद शाही
पं. हरिशंकर अंबाशंकर पंड्या भगवान महावीरना प्रथम शिष्य श्रीगौतम गणधरनी स्तुतिरूप आ कृति चमत्कारिक अने आल्हादक छे. गौतमस्वामीनु नाम जैनसंघमां अनेक रोते मंगळदायक गणवामां आवे छे. आधी ज अनेक स्तुतिओ स्तोत्रो तेमज रासो वगेरे तेमना नामधी उपलब्ध छे. तेओ जन्मे त्राह्मण होवा छतां भगवान महावीरनो एक ज वार उपदेश सांभळी तेमणे जैनधर्म अंगीकार कर्यो हतो. अने आजीवन तेनुं पालन करी तेओ मोक्षगामी चन्या हता. प्रस्तुत कृतिना कर्ता नंदिधर्मगणि छे. कवि प्रतिष्ठा सोमविरचित सोमसौभाग्य काव्य (प्रकाशक, जैन ज्ञानप्रसारक मण्डळ, मुंबाई, ईस्वीसन १९०५) ना दशमा सर्गना श्लोक ६० (पान १९२) मा कर्ता विषे नीचे प्रमाणे परिचय मळे छे. आ सिवाय तेमने अंगे अथवा तेमनी बीनी कृतिओ अंगे माहिती उपलब्ध भई शकी नथी. सद्व्याख्यानकला चमत्कृतसभो रत्नप्रभः पण्डितः शीलप्रोज्ज्वलशीलभद्रविबुधश्चारित्रिणामग्रणीः ।
तत्त दुर्गमशास्त्रपाठनकलास्पृक् नन्दिधर्मस्तथा
त्रेताग्निप्रतिमास्त्रयस्त्रिभुवने भान्ति स्म तेजोभरैः ॥ ६० ॥
"उत्तम व्याख्यानकळाथी सभाने चमत्कार पमाडनारा पण्डित रत्नप्रभसूरि, उज्ज्वळ शीलनु आचरण करनार पंडित शीलभद्रसूरि अने चारित्रीओम अग्रेसर तथा ते ते दुर्गम शास्त्रो
आचार्यो त्राणे जगतमा पोताना
भाववानी कळाने धारण करनारा नंदिधर्मसूरि आ त्रणे अपूर्व तेजना समूहथी त्रेता अग्निनी जेम शोभता हता "
उपरना लोकमां "दुर्गम शास्त्रोने भणाववानी कळाने धारण करनारा " आ प्रमाणे विशेषण आपवाथी तेओ अपूर्व कोटिना विद्वान थयेल होय तेम जणाय छे.
प्रस्तुत कृतिनी संक्षिप्त रचनामां पण तेमणे व्याकरणमां आपेल धातुओना मुख्य मुख्य सघळा अनुबंधोनुं फल गर्भित रीते समाई जाय तेवा धातुओना प्रयोगोनी गुंथणी करवा पूर्वक श्री गौतमस्वामीनी स्तुति करेल छे.
स्तुतिना अवचूरिकर्ता पण असाधारण विद्वान छे. तेओए स्तुतिकारना सघळा प्रयोगोने संक्षेपथी पण विशद रीते अवचूरिमां वर्णव्या छे. तेमणे अंते पोतानु नाम सूचवेल नथी आधी ते अंगे प्रकाश पाथरी शकायो नथी.
आ कृतिनु संपादन वे प्रतिओने आधारे करवामां आवेल छे.
(१) लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावाद. आ ज्ञानभंडारनी प्रतिनो क्रमांक १५९५४ छे. प्रतिनां पत्र २ छे. परिमाण २६४११.५ से. मी. छे. प्रति सुवाच्य तेमन आकर्षक रीते लखायेली छे. परंतु पानु चोंटी गयेल होवाथी केटलाक अक्षरो वांची शकाया न हता जे बीजी पाटणनी प्रतिने आधारे पूर्ण करवामां आव्या छे, प्रति पंचपाठमा लखायेली छे. आ प्रतिनी ला संज्ञा राखेली छे,