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कइ - साहारण - विरइया पंच परमेट्टि थुई
नमिमो अरहंत, उत्तम - सत्तहं, नमिमो उज्झायहं, कय - सज्झायहं जयहिं जिणिद इंद-वंदियकम अक्खय- मोक्ख सोक्स्ख - निहि कारण जयहिं सुनिम्मल नाण-दिवायर चतीसह अइस एहिं समिद्धा जयहिं परमु इस्सरिउ लहंता भर - एरवय-विदेहुप्पन्ना जयहिं निविड- मिच्छत्त-विणासण जयहि भव्वहं पडिबोहु करंता जयहिं सिद्ध निर्द्धत कम्मया एकतीस वर-गुण-समिद्धया जयहिं एग अहवा अणेगया जे कुलिंगे तित्थयर सिद्धया बुद्ध-बह सबुद्ध सासया मुक्क-काय कय- दुक्ख छेयया तिविह- काळे तिविहे वि जे वए दिवस - रत्ति- बहु-मेय - ठाणया आयरिय जयंतु महा-गुणिणी जिण तिथे पत्तेवि सिद्धि गया जिणवरेहि अत्थु सुंदरु कहिउ तिथयर-हृत्थु मत्थइ चडिउ संयमेव विदिण्ण पहाण -पया नइ सूरि-पईव न होति जणे चउदस-नव- पुण्वाइ-धरा ...विहरहि उज्जुप्त कसाय - जए
नमिमो सिद्धहं गणहरहं । नमिमो सव्वहं मुनिवरहं ॥ १ ॥ मोह - महारि - मल्ल. हय - विक्कम । दुत्तर भव-समुद्द- उत्तारण ॥२॥ तित्थ - पवत्तणम्मि विहियायर | दारुण - विसय- सुहेसु अगिद्धा ||३|| अट्ठ वि पाडिहेर अरहंता । परम-रूव नानाविह वण्णा ||४|| निणवरिंद अपडिय - सासण | ती - अणाय जे विहरंता ||५|| मुक्क-रोग-जर-मरण- जम्मया । जे अतित्थे तित्थे विसिद्धया ||६|| जे सलिंगे गिहि-लिंगे संगया । जे य अजिण पत्तेय-बुद्धया ||७|| इत्थि पुरिस अहवा नपुंसया । ते जयंतु पन्नरस - भेयया ॥८॥ दीव जलहि सिद्धा य पव्वए । ते जयंतु सिद्धा पहाणया ||९|| सोर्हेति जेहिं सहिया मुणिणो । सुरीहि चरिज्जद्द तं च सया ॥१०॥ सुतेण जेहिं सो संगहिउ । मणि जाह मंतु सुंदरु पडिउ ॥ ११ ॥ ते गणहर-देव जयंति जया । मिच्छत्त तिमिरु को हणइ खणे ॥१२॥ बहु- सुय पंच - विहायार - परा । आयरिय जयंति सया वि नए ॥ १३ ॥