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स्वाध्याय
107 के विविध प्रसंगों को रोचक उपन्यास शैली में इसमें वर्णित किया गया है । उपन्यास में यह जरूरी नहीं होता कि जिस रूप में वह लिखा गया है उसी रूप में वह घटना घटी हो या जिस रूप में किसी का वक्तव्य दिया गया हो वह उसी रूप में हो । यदि पूर्वाचार्यों ने * महावीर के जीवन के साथ वास्तविक नहीं ऐसी अनेक कथाओं का संकलन कर दिया. हो तो आधुनिक लेखक भी ऐसी छूट ले तो वह सह्य होनी चाहिए। छूट की मर्यादा यही हो सकती है कि भ० महावीर के जीवन में उनके आदर्शों के विरुद्ध कोई घटना का लेखन . न हो और उनके उच्चादर्शको समर्थन मिले ऐसी घटना ही वर्णित हो । ... तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ-लेखक-डो० हुकमचन्द भारिल्ल, प्र० पंडित टोडरमल ट्रस्ट, जयपुर, पृ० २०४, मू० पांच रुपये । ई० १९७४ ।
. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल की यह कृति भ० महावीर के जीवन के पूर्वभवों से लेकर जीवनका प्रारंभ करती है और जैन पुराणों में जो उनका जीवन दिया गया है उसे सुचारु रूपसे इसमें उपस्थित किया गया है । भ० महावीर के उपदेशों को विस्तार से दिया गया है । मुख्यतः दिगंबर ग्रन्थों के आधार से ही जीवन और उपदेशों का संकलन है।
तीर्थंकर महावीर-लेखक श्री मधुकर मुनि, श्री रतन मुनि, श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस'; प्र० सन्मति ज्ञानपीठ, आग्रा आदि, पृ० २९१, म० दश रुपये । ई० १९७४
श्वेताम्बर आगमों और अन्य ग्रन्थों के आधार पर भ० महावीर का जीवन तीन विद्वानोंने मिलकर लिखा है । लेखनशैली रोचक है । भाषाप्रवाह आकर्षक है।
राजेन्द्र कोष में 'अ', प्रवचनकार श्री जयन्तविजयजी, प्र० श्री राजेन्द्रसूरि प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद आदि । पृ० ४१२। मू० ८ रु० वि०सं० २०३० ।
प्रवचनकार श्रीजयन्तविजयजीने 'अभिधान राजेन्द्रकोष' के 'अ' से प्रारंभ होनेवाले शब्दों में से ३० शब्द लेकर उनकी व्याख्या की है। किन्तु व्याख्यानों को अकारादि क्रमसे न, देकर वीरवाणी, पतन का मार्ग, इत्यादि विषयों को लेकर है । उनमें 'अर्हत् प्रवचन' 'अशरीरी' जैसे शब्दों को लेकर विवेचना की गई है। . अखिल भारतीय तेरापंथ परिचय ग्रन्थ, सं० मनोहर छाजेर, प्र० अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद, बंगलूर । पृ० ४६१ । मू० रु० ३५ । ई० १९७२ ।
समग्र भारतवर्ष में श्वे० तेरापंथ संप्रदाय का जो संगठन है उसका परिचय इस ग्रन्थ से मिलता है। परिवारों के सदस्यों की पूरी सूची दी गई है । प्रमुख व्यक्तिओं के फोटो भी हैं ।
श्री हेमचन्द्राचार्यरचित योगशास्त्र-हिन्दी अनुवाद सहित, अनुवादक-मुनि श्री पदमविजयजी, सं० मुनि श्री नेमिचन्द्रजी, प्र० श्री निग्रन्थ साहित्य प्रकाशन संघ, दिल्ली. ६ । पृ० ६१७। भू० २५ रु० । ई० १९७५ । . इस ग्रन्थ में योगशास्त्र का मूल संस्कृत तथा उसका हिन्दी अनुवाद और स्वोपज्ञ संस्कृत टीका का केवल हिन्दी अनुवाद मुद्रित है । अनुवाद सुवाच्य है । - मुनिराज श्रीमत्क्षमाकल्याण जी गुम्फित-श्री अष्टाह्निका व्याख्यानम् , सं० तथा अनु०. मुनि जयन्त विजय, प्र० श्री राजेन्द्रसूरि साहित्य प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद, पृ० १३१, मू० २ रु० । द्वितीय आ०, वि० सं० २०३० । ....मूल संस्कृत ग्रन्थ नो गुजराती अने हिन्दी अनुवाद मूळ साथे आमां मुद्रित छे...