________________
रमेश बेटाई मोना विपरीत प्रभावी मुक्त थवा माटेनां प्रायश्चित्तो वगेरे पण आ कारणसर ज निर्देश्यों के (अध्याय १०)। (६) 'समाज' पटले शु"
आना परथा एक अगत्यनो प्रश्न अही उद्भवे छे । मनुनी दृष्टिए 'समाज'नी व्याख्या भी आनो जवाब अछडता नर्देशरूपे उपर आपेलो छ । उपर्युक्त मीमांसाने आधार मनुना ज प्रत्युत्तररूपे आपणे आ प्रश्ननो जवाब आ रीते आपी शकीए ।
आपणे उपर जोयुछे के सीधी या आडकतरी रीते, अति अल्प मात्रामा पण, व्याक्तना व्यक्तित्वना विकासमा प्रदान करनार, तेना आ जागतिक जीवनमा महाय करनार तरफ मानवने कर्तव्यबधन-ऋणबंधन रहे छे । आना परिणामे न तेनु जीवन उपकारवशता, प्रीति, भकि अने स्वात्मसमर्पणयुक्त बनो रहे छ ।
मानवनो प्रथम सबंध भा ससारमा तेना मनुष्यजगतनी साथे छे । समाजना अनक मनुष्यो माधा या आडकतरा राते तेना सपर्कमा आवे छे, व्यक्तिने तेनी माये आपलेमा, स्नेहनो, आत्मीयतानो सबंध बंधाय छे । मा ऋण, बन्धनमाथी मुक्ति माटे छे मनुष्ययज्ञ । मनुष्ययज्ञ एटले अतिथिधर्मर्नु पालन । मनुष्यो प्रत्ये भा रीते कर्म बजावी मनुष्य ससारबन्धननो स्वीकार करे छे । ब्रह्मचारीने भिक्षा आपको अने प रोने सामाजिक शिक्षणप्रवृत्तिमा पोतानुं प्रदान करते जुएं कर्तव्य गणायु छ नो पण एक रीते तो मनुष्ययज्ञ ज गणाय । आ बन्धननो स्वीकार मनुष्यना समाजने तेना सासारिक जीवननी समग्र व्यक्तिओनो समाज बनावे छ ।
बीजो यज्ञ छे भूतयज्ञ, एटळेके पशुओ अने पक्षीओ प्रत्ये त्याग । पशुपक्षीओ पण भाडकतरी रीते मानवना भलामां उपयोगा थाय छे । आथी मनुष्य तेमना प्रत्ये पण यज्ञभावनाथी, त्यागभावनाथी कईने कई करे छे । म रोते मानवसमाज जगतना संबद्ध मानवीना समाजमांथी विस्तरी पशुपंखीओने भावरी ले छे ।
बीजो यज्ञ छे पितृो प्रति । सर्वयज्ञोमां सौथी वधु महत्त्वपूर्ण मा यज्ञ छ । आगळ निर्देश कर्यो छे ते प्रमाणे मानवना समग्र व्यक्तित्व पर गुरुतम प्रभाव पितृमोनो छे । मानवसमग्र शारीरिक अने सांस्कारिक व्यक्तित्व पितृओ थकी छ । पितृमोनां अधूरा कार्यों ते संसारमा आगळ वधारे छे । नियमित तेमर्नु स्मरण करी, श्राद्धादि भने पिडदानादि करी ते पितओ प्रत्ये पोतानी आभारवशता अने आत्मीयता प्रगट करे छे । आम मानवो भने पशुपंखीथी आगळ वधी तेनो समाज पितृमोना जगत सुधी विस्तरे छे ।