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समाजविचारक मनु
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आपे ज छे । आ आदर्श एटले तेने मन असामान्योनुं सहज जीवन । उपर आपेला बे उदाहरणो आ विचारनां धोतक छे । वळी ते गृहस्थना धर्मों उपरांत
विगते जुदा स्नातक गृहस्थना घर्मो वर्णवे छे; विधवाविवाह अपवादरूपे के आपत्कालधर्मरूपे मान्य करवाँ छतां वैधव्यनुं गौरवगान करे छे (५.१६० ), ते आनां प्रमाणो छे । समाजनु जीवन, तेनी गति अने प्रगति वास्तविक जीवननी नीतिरीति उपरान्त आदर्शवाद भने नूतन प्रस्थाननी भावना पर अवलंबे छे तेवो मनुनो ख्याल छे । मनु जाणे एवी मान्यता धरावे छे के आ स्थितिने कारणे समाजजीवनमां स्वाभाविक अने प्रायः सर्वमान्य बनी गयेल प्रथाओ, नीतिरीति आदिने व्यवस्थित करीने मान्य करवानुं मात्र काम समाजचिन्तकनुं नथी; समाजचिन्तक समाजनो अभ्यासी, द्रष्टा, मीमांसक, तत्त्वद्रष्टा होवाथी साथे साथै समाजने ऊर्ध्वगामी बनावा पण तत्पर होय छे । माटे ज 'मनुस्मृति' मां आपणने समाज, समाजजीवन, व्यक्ति अने व्यक्तिजीवनना वास्तविक चित्रण उपरान्त आदर्श समाजनुं चित्रण पण मळे छे । मनु आपणने वास्तविक समाज भने आदर्श समाज एवां बे चित्रो आपे छे । बने तेने मन महत्त्वनां छे, समाजनी जीवादोरी समां छे ।
(३) वर्णभेदनो मूलतः स्वीकार
आपणे समाजजीवननुं निरीक्षण करतां सहेजे जोइशु के मानवमात्र समान छे, छतां मानव मात्र समान नथी । मानव तरीके सौ समान के समान रीते सौ राजरक्षण भने आजीविकानां अधिकारी छे, सौनां सामान्य धर्मो पण मनु आपे न छे (१०. ६३). छता मनु जाणे छे के मानवो बिलकुल समान नथी । तेनी समाजरचनामां वर्णभेद ए सस्कारभेद नहीं पण मानवाना सामाजिक दरज्जाना ऊंचानीचापणानो पण द्योतक छे । मनु मानवस्वभाव, संस्कार, वृत्ति, शक्तिनुं वैविध्य स्वीकारे के एटल
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'ज कहेतुं पूरतुं नथो । व्यक्ति तरीके अने समाजना सभ्यो तरीके जुदा जुदा वर्णना सभ्योनो सामाजिक दरज्जो, तेमना अधिकार, तेमना कर्तव्यो अने उत्तरदायित्व जुदां जुदां छे भने तेमाथी सामाजिक ऊँचनीचनो भाव उद्भवे छे । ते कहे छे के : ब्राह्मण, क्षत्रियो, वैश्यो, द्विजाति त्रण वर्ण ए,
एकजाति वळी शूद्र चोथो, पंचम कोइ ना । ( १०.४) सामाजिक दरज्जमां संस्कार, कार्य, शिक्षण तथा सामाजिक उत्तरदायित्व
ए चार अने तेने परिणामे घडाता जीवनना स्वरूपनी दृष्टि - मात्र जन्मने कारणे नहीं - मनुए ब्राह्मणने श्रेष्ठ गण्यो छे अने ते कहे छे के :