________________ 33 मारुति नन्दन प्रमाद निवारी प्रत का निर्देश दिया गया है। इमरी ओर श्वेताम्बर परम्परा में अम्बिका सर्वदा चर्भजा निरूपित है। उबेताम्बर प्रन्या मे चतुर्भुजा अम्बिका की भुजाओं में आम्रमिय पार पत्र के माथ ही पाश एवं अंकुश के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। इस प्रसार पाट है कि देवगर से प्राप्त दिगम्बर परंपरा की उपर्युक्त दोनों ही मूर्तियां वेताम्बर परपरा से प्रभावित है। यह प्रभाव देवगढ़ के अतिरिक्त खजुराहो एवं लखनऊ संग्रहालय की दा अन्य चतुर्भुज मूर्तिया (११वीं-१२वीं शती) मे भी स्पष्ट है। ___ म्यजगहों के मन्दिर 27 की स्थानक मूर्ति (११वीं शती ) मे सिंहबाहन से ययन शिका IT पीटिका र अवस्थित है। शीर्ष भाग से आम्रफल के गुच्छक यं जिन आकृति से युक्त अम्बिका की भुजाआ मे आम्रलुम्यि, अंकुश, पाश एवं पुत्र स्थित है। चामर बारी सेवका एवं उपासकों से वेष्टित अम्बिका के दाहिने पार्श्व में मग पुन्न आमनिन है। मपान विवरणोवाली लखनऊ संग्रहालय (66225) की मनि में मिहवाहना अम्बिका की एक भुजा मे अंकुश के स्थान पर त्रिशूल-घण्ट प्रदर्शित है। ललितमुद्राने विराजमान यजी के समीप ही उसका दूसरा पुत्र (नग्न) भी खता है। भयानक दर्शन एवं बाहर निकले नेत्री वाली अम्बिका के साथ स्त्री चामरधारिणी और उपासक भी आमूर्तित है। लवक मंगहालय (सी-३१२) की ललिनमुद्रा में आसीन एक अन्य चतुर्भुज मनि (११वीं शती) में अम्बक की निचली भुजाओं में आम्रलुम्वि एवं पुत्र, और अध्ये में पक्ष में लिपटी पुम्निका एवं तर्पग प्रदशित है। परंपरा से विपरीत पद्म और दर्पण का चित्रण हिन्दू दवी अम्बिका (पार्वती) का स्पष्ट प्रभाव दरशाता है। पन का चित्रण खजुराहो की अम्बिका मूर्तियों में भी प्राप्त होता है। शीर्षभाग मे संजन जिन आकृति एवं अनफल के गुन्छकों से युक्त सिंहवाहना अम्बिका के वाम पान दूसरा पुत्र अस्थित है। देवगढ़ से अम्बिका की समाविक सतन्त्र पूर्तियां (लगभग 50) प्राप्त होती है। (चित्र 2) नोन उदाहरणों के आनरिक्त अम्बिका सर्वदा द्विभुजा है, और उसके चित्रण में एकरपना प्राप्त होती है। अधिकतर उदाहरणों में अम्बिका को साधारण पीठेका पर स्थानक मुद्रा में उत्कीर्ग किया गया है। कुछ ही उदाहरणों में अम्बिका, आसीन है। शीर्प भाग में आम्रवृक्ष एवं लघु जिन आने से युक्त अम्बिका की भुजाओं में सर्वदा आम्रलुम्बि० एवं पुत्र प्रदर्शित है। कुछ उदाहरणों में बालक गोद के स्थान पर पाम पाश्र्व में बड़ा है, और उसका एक हाय अम्बिका के हाथ में स्थित है। सभी उदाहरणों में वाहन सिंह उपस्थित है। दिगम्बर परम्परा के अनुरूप हो दूसरे 68 सराहों की अन्य समस्त चतुर्भुज मूर्तिया म ऊध करा म अंकुम एक पाश के स्थान र पार (या पाम मे लिपटी पुस्तक) प्रदर्शित है। " साधिक मूर्तिणं ग्यारहवी ती मे उत्कीर्ण की गई / 10 माह मेन सप्रहालय की एक मूर्ति (१1वीं शती) में यक्षी की दाहिनी भुजा में आम्र लम्बि के स्थान पर छपस स्थित है।