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जोडता है11 । जब ब्रह्मा के मोक्ष का समय आना है ना मनार ~~उन्ममर भ्रमग से-थके हुए प्राणिय के विश्राम के लिए महेश्वर नंहार कम करने । संहारेच्छा के साथ ही सभी कार्य क्रमसे परमागम विटन दान । म मलय होता है। प्रालय में प्रविभक्न परमाणु और धर्म-अधर्ममग्यांगन आल्माए ही होती हैं12)
इस प्रकार प्रशस्तपाद के अनुसार महेश्वर के कवर मकरम मन्टनर महार होता है । महेश्वर की इच्छा पवनपरमाणुओं में:-पन्न हानी गांभक का का साक्षात् कारण नहीं। उनकी इच्छा तो माटों को कार्यान्मुन्य करती है। संयुक्त से अदृष्ट पचन परमाणुओं में आरंभक गान -पन्न करने है। तथा महार सङ्कल्प से ब्रह्मा को और सकल भुवनों को उत्पन्न कर जीयनपटकमा ब्रह्मा । नियुक्त करता है। ब्रह्मा जीवों को कर्मानुत्प नान, भाग. आय र योन! बनाता है।
महेश्वर सर्जनेच्छा से पांच भूनां का. शरीरबारियों के रहने र यानी का (त्रिभुवनों का) और ब्रह्मा का सर्जन करता है। जीवष्टि का मर्जन या करना है
और ब्रह्मा ही जीवों को उनके कर्मा के अनुसार नान, श्रम, बैंगन्य, भाग, और अगर देता है। उसी वजह से ब्रह्मा को लोकपितामह कहा है। ब्रह्मा का माम हाना है। ब्रहूमा प्रतिसर्ग भिन्न है जब कि महेश्वर तो एक और निन्य है। महेश्वर में केन्द्र इच्छा है, जब कि ब्रहूमा में ज्ञान (-कर्म-फलज्ञान), वैराग्य और श्चर्य है। महेश्वर सृष्टि उत्पन्न करता है किन्तु नृष्टि की उत्पत्ति से उसके विनाश के दर्शमयान उसका संचालन ब्रहमा करता है। प्रलय में तो कर्म के अनुरूप फलदान की क्रिया कक जाती है, विराम को प्राप्त होती है। इसलिए प्रलय में जमा की आवश्यकता नहीं। महेश्वर का या बहूमा का उपदेशक या वेद कर्ता के रूप में वर्णन करने में नहीं आया है।
उत्तरकालीन न्याय-वैशेपिक अन्यों ने ब्रहमा को दूर कर उसके कार्य को नी ईश्वर को ही सौंपा है। ईश्वर ही कर्म के विपाक को जानकर उसके अनुरूप फल उसके कर्ता को देते हैं। तथा उत्तरकालीन न्याय-वैशपिक अन्यों में ईश्वर अमन और इच्छा दोनों गुणों का धारक है सा माना गया है। यह यन्तु इसके आननी चर्चा से स्फुट होगी।
(५) उद्योतकर और ईश्वर
प्रशस्तपाद ने जगत के कर्ना (निमि नकारण) के सपने ईश्वर को स्वीकार किया है। किन्तु उसका व्यवस्थित विचार सोनकर के न्यायवानिक में हमें मन में पहले मिलता है। उद्योतकर कहता है कि जगन का दानकारण परमाणु है।
और जीवों के क्रो' की सहायता से ईश्वर परमाणुओं में से नाब काय की उत्पन्न करता है14। ईश्वर ही सृष्टि की स्थिति के काल में जय जिम जीव के जिस क्रम का विपाक काल आता है तब उस जीव को उस कर्म के अनमार फल देता है।