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________________ अपभ्रंश संधि काव्यो इति अंतरंग-संधिः समाप्तः ॥ इति नवमोधिकारः ॥ संवत् १३९२ वर्षे आपाढ शुदि २ रखौ ॥ ग्रंथान श्लोक २०६ ।। श्री धर्मप्रभमरि (शिष्य ?) रत्नप्रभकृतिरियम् ॥ १६. अवंतिसुकुमाल संधि ____ आनी पाटणना भंडारोमा बे ताडपत्रीय प्रतो मळे छे. आदि-अंतनी नोंध नथी मळती अने कर्तार्नु नाम पण जणायुं नथी.' दोघट्टी' वृत्तिमांनी आ ज नामनी संधिथी आ भिन्न छे, कारण बनेनुं गाथा-प्रमाण जुदु जुदु छे. विषय नाम परधी ज स्पष्ट छे. ताडपत्रीय प्रतो परथी अनुमाने आनो समय चौदमी मदोनो होवा संभव छे. १७. भावना संधि----जयदेव मुनि आ संधि साक्षर श्री मधुसूद नभाई मोदीए छेक ई. स. १९३०मां विवेचन साथे संपादित करेल. ए वखते एनी एक ज हस्तप्रत मळयानुं तोश्री नोंधे छे. परंतु अत्यारे आनी घणो प्रतो मळी आवे छे. ला. द. विद्यामंदिर, अमदावाद मां चारेक प्रतो छे. जेमां एक तो संवत् १४७३ नी लग्वेली छे. पाटणमा छसात प्रतो छे. सुरत, लींबडी अने वडोदरामां एक एक प्रत छ. श्री. नाहटाजीना संग्रहमां पण एक प्रत छे. जेसलमेरमा बे प्रतो छे. आ परथी एम लागे छे के आ संधि प्रसिद्ध हो. आदि-पणमवि गुण-सायर, भुवण-दिवायर, जिण चउवीसइ इक्क-मणि । अप्पं पडिवोहइ, मोह निरोहइ, कोइ भव्य-भावण-वसिण ॥१॥ रे जीव निसुणि चचल-सहाव, मिल्हे विणु सयल वि वज्झ भाव । नवभेय-परिग्गहु विविह जालु, संसारि अस्थि सहु इंदियालु ॥२॥ अंत--निम्मल-गुण-भूरिहिं, सिवदिवसरिहि, पढम सीस जयदेव मुणि। किय भावण संधि, भाव विसुद्धि, निसुणउ अन्नु वि धरउ मणि ॥६२॥ १८. शील संधि --- जयशेखरसूरि-शिष्य (चचसेनसूरि ?) आ तथा पछीनी उपधान संधि-बन्ने कोई जयशेखरसूरिना शिष्यनी रचनाओ छे. श्री. मो. द. देसाईए आने पंदरमी सदीना उत्तरार्धनी रचना गणी छे. १. पत्तनस्थ .....सूची पृ. ९८, १९३. २. एनल्स ओव धी भण्डारकर ओ. रि. इ. पुना. वो ११. (१९३०) पृ. १-३१ जे. गू, कविओ भा. १ पृ ८३
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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