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________________ अपभ्रंश संधि-काव्यो एमना फाळे जरो. परंतु तेम होवानी शकयता अति अल्प छे. कारण नामसाम्य सिवाय कोई अन्य प्रमाण मळतुं नथी. ज्यारे देवचंद्रसूरि नामक जैनाचार्या एक करतां वधु होई शके. आम नवुं प्रमाण न मळे त्यां सुधी रत्नप्रभसूरिने संधिकाव्या प्रणेता अने जिनप्रभसूरिने सिद्धहस्त संधिकार तरीके गणवा पडशे. १२. स्थूलभद्र संधि - देवचंद्रसूरि कर्ता विशे कई माहीती मळती नथी, आ संधिनी एक मात्र हस्तप्रत पाटण 'ना भंडारमां मळे छे.' ते ताडपत्रनी छे अने चौदमी शताब्दीना प्रारंभकाळनी छे, आदि - मढ - विहार- पायारह सोहिउ वर मंदिर पवर पुर अमरनाहु पिक्खव मोहिउ | इय एरिस पाडलियपुरु जंबूदीव - विक्खाउ, करइ रज्जु जियसत्तु तर्हि नंदु महाबल राउ || अंत --- को वियि तणु तविण सोसर को वि अरण्य-वण निवस | पियको विकिर सेवालु भक्खर सो वि तुह आसंकए ॥ जो वेस घरि उमासि निवसइ सरस-भोयण - सित्तउ । तसु थूलभद्दह पाए णमउं जिणि मयण तुहुं जित्तउ || १३. चतुरंग भावना संधि अज्ञातकर्तृक खंभातना शांतिनाथ भंडारमां प्राप्त थती आ संधिनी एक मात्र ताडपत्रीय प्रति विक्रमनी चौदमी सदीना प्रथम चरणनी छे. कर्तानुं नाम मळतुं नथी. आदि - सिरि वीर जिणेसर, नमिर सुरेसर, पाय - जुयल पणमेव जिय । चउरंगिय भावण, सिव सुह-कारण, अणुदिणु भाव एरिसिया || अंत -- इय लघु सुचंग, तई चउरंगं, जीव म हारहि एहु वरु । कम्म-विणासणि, भव-दुह- नासणि, जायइ महु पुणु देहधरु ||७४ || आगळ वर्णवाल जिनप्रभसूरिनी चतुरंग संधि थी आ संधि भिन्न छे ए नामना तफावत तथा गाथा प्रमाणना तफावतथी जणाई आवे छे. १. पत्तनस्थप्राच्य जैनभाण्डागारोय ग्रन्थसूची भा. १. पू. ४१२ २. खंभात शांतिनाथ भंडार सूची.
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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