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________________ सुषमा कुलश्रेष्ठ शिव और अर्जुन के युद्ध में बीजार्थ गर्म सन्धि की अपेक्षा अधिक विकसित है किन्तु क्रोधादि के कारण विघ्नयुक्त भी है । अत' यहाँ विमर्श सन्धि है । शिव का प्रसन्न हो प्रकट होना फलप्राप्ति की नियतता का सूचक है । I ना० शा०, सा० द० तथा दशरूपक के अनुसार इस सन्धि के अग १३ हैं। ना० शा ० अनुसार इस के अग इस प्रकार हैं 3. ५ व्यवसाय २ ३. ४. १ २ ३. 8. अपवाद संफेट अभिद्रव शি ३ 8. सा० द० अपवाद सफेट व्यवसाय द्रव ६ प्रसङ्ग ७ दुति ८ खेद अपवाद संफेट विद्रय द्रव १२ सादन १३ प्ररोचना इन्हीं अह्नों का परिगणन इस प्रकार है ९ प्रतिषेध ५ श्रुति ६ शक्ति ९ निषेध १०. विरोधन ११ आदान ७. प्रसङ्ग ८. खेद दशरूपककार ने इन्हीं भङ्गों को भिन्न क्रम से प्रस्तुत किया हैं । उन्होंने ना० शा० और सा० द० में दी गई सूची के ३ अंग छोडकर नये ३ अगों का अन्तर्भाव किया है । १०. विरोधन ११ प्ररोचना १२ आदान १३. छादन दशरूपक में परिगणित अङ्ग इस प्रकार हैं५ द्युति ६. शक्ति १० विरोधन ९ व्यवसाय ७ प्रसङ्ग ११. प्ररोचना ८. छल १२. विचलन १३. आदान तीनों ग्रन्थों में प्राप्त विमर्शसन्ध्यङ्गों को देखकर निम्नलिखित तथ्य प्राप्त होते हैं १. ना० शा ० में जिस क्रम में इन सन्ध्यङ्गों को प्रस्तुत किया गया है, उसका सा० द० में अंशत तथा दशरूपक में स्वल्पांशत' पालन किया गया है ।
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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