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गुणसमिखिमहत्तराविराय हणुमनपमुहम्वयरसहिओ रामो करित्तु सगामो(म) । नि,हाणन गमण सो माणह सीय तमो ठाणा ॥४९१।। मा पुण रज पलिय पन्चज्ज गिन्हिऊण करिय तव । खावग कम्ममूल पत्तो परमं पय ठाण ॥४९२॥ मा पुण अजणमुदरि गिहिधम्म पालिऊण ससहीया । पवज गि-हाई भावेण साहुणीपासे ॥४९३॥ मामन्नं च पालिय अणसणविहिणा गया य सुरलोय । नत्तो चविण सा गमिम्सई सासयं ठाण ॥४९॥ प्य सम्वेवेण अजणमुदरिमहामईचर्यि । बह जणवयणाउ मा जह निमुय तह इह निबद्धं ॥४९५॥ जाण न सदबुद्धि न अथसुद्धिं च न 'किरिययासुद्धिं । न हुद न हु बधं न हु कविमग्ग च जाणामि ॥४९॥ अन्नाणवसेण मग जा अजणमुदरीकहा विहिया । ज किंचि यह अलिय सोहेयवं बुहेहि तय ॥४९७॥ मस वि मिश्छादुक्कड्ड मिच्छकहा-अन्नहापरूवणए । पारण अदरसण मुझइ चित्त करताण ॥४९८॥ प्रय सम्ववेण भणित चरिउ मए इप्परु( स-पर)हेउं । विधरमवलोइम्जा रामायणपमुहसत्येसु ॥४९९॥ अजणमुदरिचरिय जो एय मुणइ चितई चित्ते । तणऽपमुहटाए न हु कुजा जिणवरअभी ॥५०॥ चरियमिण निमुणता अजणमुदरिगुणे य धारिता । भवा नण लहिही सग्ग कमसो सिवसुह च ॥५०१|| सिरिबसलमेरपुर विक्रमचउदहसतुत्तर वरिसे । वीरजिणजम्मदिवसे कियमजणमुदरीचरियं ॥५०२॥ जो आसायण कुणई अणंतससारु भमइ सो जीवो । जो आसायण रक्खई सो यावइ सासयं ठाणं ॥५०३॥ ॥इति श्रीअ नणामुंदरीमहासतीकथानक समाप्तम् ॥ कृतिरिय श्रीजिनचंद्ररिशिष्यणीश्रीगुणसमृद्धिमहत्तराया ॥
किसाशुविमित्यर्थ ॥
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