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रूधें इंद्री पांचने, द्वादश पडीमा सार, अभिग्रह च्यारने आदरे, ए करण - सीत्तरी सार. ११
समताना
एणी ते चरण- सीत्तरी करण-सीत्तरीने गुणे करि विराजमान, सागर, गुणना आगर एहवा साधु मुनीराज अनेक ओपमा लायक, भवदुखवारक, शीवसुखकारक, पुज, पंडितशिरोमणी, पुज पन्यासजी श्रीश्रीश्रीश्रीश्री ५ श्रीरूपविजेजी गणी, गीतारथ, सर्व प्रवार समसत्त, चरणजीवे, श्रीजोधपुरगढ माहादुरगेसु लीखतु सिघवी फोजराज गुलराजजीनी वनणा १०८ वार दीन प्रते अवधारसी । इहां गुरजी सायबने प्रत्तापें करी सुख-साता छे. आपनी सुखसाताना पत्र घडी-घडीना पल-पलना लीखावसी और आपने वांदण री मनमें अभीलाषा घणी रहे छे सो आप क्रीपा करी एक वार श्रीजोधपुर पधारसी, सो आपने वांदसु नै आपारी वांणी सुणसु सो दीन लेखै हुसी । सो आप क्रीपा करी जरूर पधारसी । और आपारा शीष मुनि कुवरविजेजी श्रीजोधपुर चोमासो कर्यो छे तिणसु धरमारो मेहमा घणो वध्यो छे. घणा लोक मारगे आव्या छे. धरम-चरचा वखांण वांणी दीन प्रत्ते विशेष विशेष हुवै छै. तीणनी कीसी वातनी चींता रखावसी नही. और वखांणे समकीत्तसीत्तरी तथा गोतमकुलक माहाराज श्रीपद्मविजेजी क्रत वंचाए छे सो जाणसी. और आपने शरीरे दमनो उठाव रहेवो को छे. तिणसु आपने बेशवाने काजे म्यांनो १ सा० कुसलचदजी वीरजी वछराज पाटणवाला तीणनी लारे मेल्यो छै ते पोतो लीखावसी । ओर हरकोइ कोम-काज मा[ रा ] लायक हुवे सो क्रीपा कर लीखावसी । ओर श्रीदेवजात्राए, रूडे अवंशरे संभारसी और समसत श्रावक श्रावकावांने मारा प्रणाम वचावसी |
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अनुसन्धान- ६४
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दसकत मु ॥ केशरीचंद सोझतवालानी १०८ वार वनणा अवधारसी । ओर हु अठे कुवरवीजेजीसानें वांदवा आयो सु. सवारे पाछो पाली जावसु सो क्रीपा सुदीसष्ट रखावे तिण सुविसेष कर रखावसी । ओर आखर उच - नीचओछो-अधको कोंना मात्रनी तथा दुजी ओपमा लीखणमे भुल पडी हुवे तेनो गुंनो तकशीर माफ करावसी । ओर प्रस्ननो पोनो १ जुदो उत्तारिने इण कागदमें बीडीयो छे तेना उत्तर पाछो विचारिने ताकीदसु लीखावसी । संवत् १८८२ना आसोज वद १३ शिष्य कुयरविजैनी वंदना दिन प्रते १०८ वार करि
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