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जुलाई - २०१४
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॥ तो छंद-त्रोटक ॥ अति सुंदर मंदिर ऊंच घणं, झुके जांण झरोखें विमांण वरं, कियूं गौरवकी जौंख अनौंखतरं, थित कोट सुसोभित थानथिरं. १ कांमध्वज अजीतह राज करें, रघुरांम तणां तपतेज तर्रे, महा रिद्ध समृद्ध अछै अगणं, घोडां-रथ-पायक थाट घणं. २ अनमी सह(हु) आय पगां नमीया, कय-वंक-पाधोरेय नेत्र कीया, प्रजलोक पयंपत हे जस्स वांण, उदयों अवतंस कुलोधर भांण. ३ वडी बुद्ध विशाल. धरे धीर मनं नित नाम धर्म, करै नांहि कछपि...... ४
॥ छंद हाटक ॥
.............. रसा, कुंअर सरसा, करत गोखें मजाख(?), गायन जन गावं, माआ पावं, देवे हयवर दांन,
ऐसों घांणोरा..... ३९ ओपैं तिहां इंदर, मैहेलसु सुंदर, वणे भले सुविशाल, भुजबल अति भारी, है क्रमधारी, राजन सिंहखुस्याल, मौंजी मछराणं, कुलमें भाणं, समझू वडे सयांन,
ऐसों घांणोरा..... ४० दरबारकै सनमुख, दरसण गजमुख, चौंकी बडे सुचंग, पौसालकू पेखों, दिल भर देंखो, गौंख जोख उत्तंग, वांणारसवेसं, विसवावीसं, राजमांझ सनमान,
ऐसों घांणोरा..... ४१ तिहां छात्र पढंता, गणित गणंता, विनये विद्या लेय, आदू मरजादा, जहां है जादा, लगन मुहौरत देय, हट्टांक ऊपर, युगल किसौंरका, मोटां मिंदर जांन,
ऐसों घांणोरा..... ४२
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