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________________ १९२ हरखबाई, प्रमुख समस्तनी त्रिकालवंदना अवधारवी. ॥ दा अथ श्रीमद्गुरुविज्ञप्तिभास लिख्यते ॥ अथ श्रीढाल ॥ पटोधर पाटि पधारो श्रीविजयलक्ष्मीसूरिंदा, वडतपगच्छगगनदिणंदा, जेहोना पग प्रणमे भवीवृंदा. १ मनोहर विनति अवधारो, पूज्य गुर्जरदेस पधारो [ए आंचली ] श्रीविजयउदयपट्टधारि, जेहनी कीरत्त जगमें सारि नित नमण करे नर नारि. २ - ए देशी ॥ मनोहर विनति अवधारो, पूज्य सूरत सेहेर पधारो गुरुजी छो जाचा हीरा, ए तो मेरु परे वली धीरा, सायरनी परे गंभीरा ३ मनोहर.... लघु मरुधर देश वखाणें जगमां पालडी सहु जांणें, गुरूजनम्या पूंण्य प्रमांणें ४ मनोहर.... गुरु मात आणंदबाई जाया, सा. हेमचंदकुलमें आया, भले प्रागवंस दिपाया ५ मनोहर.... गुरु सोहे सू(सु) धर्मा-पाटें, वरते वली खास सूथाटें, एतो सूधाचारनि वाटे. ६ मनोहर...... Jain Education International छत्रीस गुंणें भरीआ, गुरु समतारसना दरिआ, वारुं संजमवामा वरिआ. ७ मनोहर.... एहवा सत्रुं ते तेरथी दूरा, त्रिण मित्र साथे वली पूरा, गुरु च्यार तें जीपण शूरा. ८ मनोहर.. एणें सकल गुणे करी राजैं, गुरु दिन दिन अधिक दिवाजैं, मूंख देख्यां [त]म सवी भाजैं. ९ मनोहर.... श्रीमरुधर देस वकीनो, तामें सीरोही नगर नगीनो, चौमास जिहां पूज्यनीनो. १० मनोहर ..... श्रीगुर्जरदेस ते वारु, जिहां सेहेर सू सुखकारू, जिहां नर नारि व्रतधारु. ११ मनोहर.... अनुसन्धान-६४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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