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________________ जुलाई - २०१४ १५१ सब गछ के राजा बहोत दिवाजा रिपुवाता भाजंदा है । मोहन अवतारी विद्या सारी आगम अर्थ जाणंदा है । सब शास्त्र संपूरं सदा सनूरं नयणां दीठ ठरंदा है। जिनाक्षय पटधारी शुद्ध आचारी, सवि गुण मांगा सोहंदा है ॥२॥ सवि भूपत रांणा हुकम प्रमाणां तुझ चरणां आय नमंदा है । करुणा को दरीयो गुणमणि भरीयो सबकुं सुक्ख करंदा है। इकविध कुं टाले दुविध संभाले तीनूं तत्त्व जाणंदा है । च्यारुं कुं चूरे पांच हजूरे जीवदया पालंदा है ॥३॥ भय सप्त निवारे मद सहु वारे नवविध ब्रह्म धरंदा है । दस श्रमण के धारक सह अंग पारक बार उपांग जाणंदा है । त्रयोदशकुं टारे चवद्दकुं धारे पनरह सिद्ध समरंदा है । कला षोडशं धारी लग्गे प्यारी वांणी चित्त मोहंदा है ॥४|| सतरह परिहारं बंभ अढारं सदगुरु ते टालंदा है । काउसग के दोषं कढनह रोषं मनसुं दूर तजंदा है । वीस विसवा पाले दया संभाले निश्चल ध्यान धरंदा है । संबल इकवीसं बावीस परीसं सुद्ध मने जीपंदा है ॥५॥ जे सुगडांगं अध्येन सुचंगं चौवीस जिन ध्यावंदा है । पचवीस कुं भावे चित्त रमावे भली जुक्त भावंदा है । . छावीस साधारं कल्पविचारं तिणसुं चित्त लागंदा है । जे गुण अणगारं सतवीस संभारं सब ते अंग रमंदा है ॥६॥ . कहे मुनीसं आचार अडवीसं ताका अर्थ कहंदा है । श्रुत ओगणतीसं तजे मुनीसं तांकुं दूर करंदा है । मोह निवारे तीसकुं डारे निरमल जाप जपंदा है । सिद्ध गुण इकवीसं लक्षण बत्तीसं श्रीगुरुध्यान ध्यावंदा है ||७|| तेत्रीसकुं टाले दोष निहाले तांकुं गुरु वारंदा है । एहवा जिनेशं अतीशय चोतीसं गुरु के अंग वसंदा है। पेंत्रीस गुण वांणी अमृत सम जांणी सुरनर सुणि रिझंदा है । छत्तीस गुण पूरा सदा सनूरा गुणे करि अधिक फाबंदा है ॥८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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