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________________ जुलाई - २०१४ १४९ जय जय सुविहित-मुनि-रयण, चंदन-वयण रसाल । तिहुअण-मंडप दीपतो, कीर्ति फुरे नितु जास ॥५॥ अथ गुरुगुण अमृतध्वनिः पद पायो खरतर प्रगट, अधिके पुण्य अंकूर । श्रीजिनचंदसूरिंदजी, लब्धि गुणें भरपूर ॥ चालितो भरपूर, गुणेसर भूर, चढते नूर, वाजे तूर, शशिहर सूर, तेजे पूर, मनमथ चूर, सील सनूर, कामित पूर, दालिद चूर, पुण्य अंकूर, लच्छी लूर, घृतगुडचूर, वंछितपूर, कर्मकसूर, देखत दूर, सदा सनूर, गुण भरपूर, एम जरूर, पुण्य पंडूर, पद पायो खरतर प्रगट० ॥१॥ . पायो खरतरगच्छ प्रगट, पन्य अधिक परसिद्ध । जिनचंदसूरि दीठां दरस, सदा होइ नव निद्ध ॥ तो चालतो नवनिद्ध, ऋद्ध समृद्ध, दिन दिन वृद्ध, पावत ऋद्ध, कामित सिद्ध, बहु दत दिद्ध, सुक्रत किद्ध, जस धण लिद्ध, मेरु प्रसिद्ध, कहे जस किद्ध, वंछित दिद्ध, प्रणमित सिद्ध, पुण्यप्रसिद्ध, पायो खरतरगच्छ प्रगट० ॥२॥ दूहा इम अनेक गुणें करी, सोहै गुण छत्तीस । विविध करीने वर्णवं, सहु गच्छनो तूं ईस ॥१॥ छन्द चालि .. जिहां सोहे नरवर राज धर्मी पुन्यनो भण्डार ए । तिहां धर्मकरणी सोह तरुणी लच्छीने अनुहार ए । — बहु लोक दाता धर्म ताता रसिक ने छोगाल ए । तिहां द्रव्य खरचे पाप विरचे दिए दुर्बल भाल ए ॥१॥ . प्रासाद सोहै मन मोहै जैन ने शिव सोहता । पोषधशाला धर्म चाला साधु ध्यान सुसोहता । नर नार पूजे कुमति रूजे साधता सहु धर्म ए । इम हाथ जोडी मांन मोडी भाषता नही मर्म ए ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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