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चातुर्मासने अनुलक्षीने करवामां आवेल धर्माराधना, तपस्या आदिनुं आ पत्रोमां बयान होवा छतां खमतखामणां (क्षमापना ) नुं लखाण क्यांय जोवा मळतुं नथी. परन्तु एवी कल्पना छे के विज्ञप्तिपत्रना ओळिया (Scroll ) मां संस्कृत काव्यमय पत्र समाप्त थया पछी भाषामां खमतखामणांनुं लखाण तथा प्रायः सङ्घना श्रावक वर्गना हस्ताक्षर होवां जोईए. आ तो ते पत्रोना नूतन काव्यात्मक अंशोना संकलनरूप प्रति छे, तेमां ते बधो अंश लखवानुं अनावश्यक गणाय ते तो समजी शकाय तेम छे.
आ पत्रो उकेलवा तथा बेसाडवा माटे मुनि विमलकीर्तिविजयजी तथा मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजयजीए घणो श्रम लीधो छे ते अहीं नोंधवं जोईए.
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प्रथम पत्र स्तम्भतीर्थ नगरे बिराजता गच्छपति श्रीसोमसुन्दरसूरि उपर लखेलो विज्ञप्तिपत्र छे. पत्रनां प्रथम ६ पद्योमां मङ्गलाचरण पछीनां ४ पद्यो स्तम्भतीर्थना वर्णननां छे. ते पछी ११ थी ५५ सुधीनां पद्यो गुरुना गुणवर्णननां पद्यो छे. आ पद्योमां श्रीसोमसुन्दरगुरुना गुणोनुं जे वास्तविक वर्णन थयुं छे, ते बहु स्पर्शी जाय तेवुं थयुं छे. आ वर्णनमां अत्युक्तिने जाणे के स्थान ज नथी अपायुं ! गुरुना सद्भूत गुणोनुं वर्णन करतां पद्योमां उपमाओ पण एटली सरस गुंथी लेवाई छे के ते उपमाओथी गुरुना वर्णित गुणो वधु जळहळी उठे छे. उदा० पद्य २८मां गुरुने समग्र गणितानुयोग कण्ठे होवानुं विधान छे, अने तेम छतां तेओ तेनुं कथन, मने आवडे छे तेवी जाहेरात पण, अने गणितानुयोगना गम्भीर ज्यां त्यां न कहेवाय तेवां रहस्योनुं प्रकाशन पण, क्यांय करता नथी, एवा गम्भीर चित्तवाळा छे, एवं गुणवर्णन छे; तेना समर्थनमां आपवामां आवेली उपमा जेम सज्जन व्यक्ति पोते करेला परोपकारनी
‘यथा सन् स्वकृतोपकारम्'
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वात जाहेर नथी करतो तेम आ पण गुरुना चित्तनी गम्भीरताने ज व्यक्त करे छे, वर्णवे छे. गुरुना स्वाध्यायधर्मनुं वर्णन पद्य २९मां छे, त्यां 'यद्वद्वणिजः क्रयादौ' 'जेम वणिक लोको धंधाथी न थाके तेम' आवी उपमा आपीने गच्छपति गुरुनी अप्रमाद दशाने केवी सरस वर्णवी छे ! एमना विनीत शिष्योनुं वर्णन पण पद्य ३४मां केटलुं हृदयस्पर्शी थयुं छे ! गुरु हितकारी अने परम पथ्यभूत एवां प्रिय वाक्यो वडे शिष्योने एवी हितशिक्षा आपता के तेमना विनयी
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