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फेब्रुआरी २०११
'कुमारसम्भव' - बालावबोध (अपूर्ण)
सं. हरिवल्लभ भायाणी
[नोंध : सद्गत भायाणीसाहेबे स्वहस्ते वर्षो अगाऊ लखी राखेल आ अधूरी कृति जेवी छे तेवी ज अत्रे आपवामां आवे छे..
'कुमारसम्भव' महाकाव्य ए महाकवि कालिदासनी उत्तम रचना छे. तेना प्रारम्भना थोडाक श्लोको, ते पर संस्कृत टीका, ते टीकाना आधारे अतिसंक्षिप्त बालावबोध, आटलुं आ सम्पादनमां प्राप्त छे.
__ कोईक भण्डारनी कोईक २ पानांनी अपूर्ण एवी हस्तप्रतिनी भायाणीजीए करेली आ नकल छे. शरुआत 'अहँ नमः' थी थाय छे, तेथी जैन मुनिए आ प्रति लखी होवानुं निश्चित थाय छे. पोताना धर्म अने मतनी साथे सम्मत न होय तेवा ग्रन्थकारोना तेवा प्रकारना ग्रन्थो उपर कलम चलाववानी उदारता तेमज हिम्मत जैन मुनिओ सिवाय अन्यत्र जोवा मळती नथी.
आ बालावबोधमां ध्यान आपवायोग्य एक-बे शब्दप्रयोगो'किरि' - किल ए अर्थमां वपरायो जणाय छे.
'रहितः' - 'रह्यो' एवा अर्थमां प्रयोजायो छे. जैन संस्कृतनो आ विशिष्ट प्रयोग गणाय.
__ आ सम्पादन द्वारा ह. भायाणी वती हेमचन्द्राचार्यने स्मरणांजलि आपवानो योग मळे छे, साथे साथे आ मिषे भायाणी साहेबने पण स्मरण करवानी तक सांपडे छे, ते वाते द्विगुण-बेवडो आनन्द छे. - शी.]
अहँ नमः अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
पूर्वापरौ तोयनिधी विगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ॥१॥ इह प्रेक्षापूर्वकारिणां महाकवीनां काव्यारम्भे यथैवाभीष्टदेवतासंस्तवनमभ्युदयनिदानं तथैवोत्कृष्टवस्तुसंकीर्तनमपीति हृदि धृत्वा श्रीकालिदासकविराह ।