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________________ ७८ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ ऊभी रही. तेने जोतां ज आचार्ये सूचव्यु के 'तारा परिवारे कबजे लीधेला आम्बडने तो जोगणीओए वहेंची लीधो होइ कांई थई नहि शके.' त्यारे यशश्चन्द्र गणीए देवीने समजावी के 'तो हवे तुं तारा स्थानके बेसी जो ! हजी आचार्यदेवने मान आप अने आ कार्य कर; तो तेमनुं मान रहे ने तारुं स्थान रहे.' आ सांभळतां ज भयभीत देवीए जोगणीओने आदेश को ने आम्बडने छोडावी देधो. आम्बड स्वस्थ थयो. बीजी सवारे आचार्यनी सूचनाथी आम्बडे सैन्धवीमाताने साहस्रिक (हजार रुपियानो) भोग धराव्यो. ते पछी तेणे चैत्यनो जीर्णोद्धार कराव्यो." प्र.च. नुं आ वर्णन वधु वास्तविक छे, अने प्र.चिं. गत वर्णन अत्युक्तिसभर छे, ते आ बधुं वांच्या पछी स्पष्ट थाय छे. सारांश के आचार्य आकाशगमन-शक्ति धरावता हता, ए प्रकारनी वार्ताओ तेमनुं माहात्म्य वधारवा माटे उपजाववामां आवेली कथामात्र छे, जे कथाओ खुद आचार्य पण मंजूर न राखे. तो, हेमचन्द्राचार्य विषे तेमना समयथी लईने आज सुधीमां फेलाती रहेली केटलीक महत्त्वनी गेरसमजणो के अनुचित वातो आ लेखमां नोंधी, तेनी तथ्यता परत्वे पण ऊहापोह को. एक वात स्पष्ट छे के तेजस्वीनो ज तेजोद्वेष थतो होय छे. द्वेष करीने पण तेमणे आचार्यनी तेजस्वितानो आडकतरो स्वीकार ज को छे एम कही शकाय. आचार्यना तेजने नमन !
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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