SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ बांधवामां आव्यो हशे. दरेक जैने सारा माणसो साथे संगत करवी तेणे पोताना मातापिताने मान आपq. आ बोधवचनमां ने याहुदी लोकोना धर्मपुस्तकनी चोथी आज्ञामां फेर मात्र अटलो ज छे के याहुदीओनी आज्ञामां पिताने पहेलां मूकवामां आव्या छे. दरेक जैने वळी जे शहेरमां अथवा मुलकमां तेना पर जुलम गुजरे अथवा मोटी विपत्ति आवी पडे त्यांथी नीकळी जवं. हेमचन्द्रे कहेलो आ जोरजुलम धर्मसम्बन्धी जोरजुलम होय तथा विपत्ति ते कंइ मरकी के एवं कंइ होय अम लागे छे. दरेक जैने कदी निषेध करेलां स्थळोजे जर्बु नहि. आ स्थळे पराया धर्ममां देवालयो विषे ईशारो करेलो होय ओम लागे छे. ब्राह्मणोओ आ उपरथी शैवधर्म पाळनाराओ माटे तथा जैनोनी टकोर करवा माटे आनी सामुं ओवी मनाईनी आज्ञा करी दीधी छे के ओक जंगली हाथीना सपाटामांथी बचवाने कारणे पण कोइओ जैन देरासरमां पेसवं नहि. दरेक जैन वळी पोतानी आवक तथा खर्च सरखा राखवा तथा पोताना गजा प्रमाणे खर्च करवो. के जे बोध आखा जगतमां सघळा माणसोओ ध्यानमा राखवानो छे. दररोज तेमणे देवालयमा दर्शनार्थे जवू अने ओछामां ओछा सोळ माणसोनी संगतमा रही कथा सांभळवी. सोळ माणसोमां बेसवानी फरज हेमचन्द्र शा सारु नाखी हशे ते कोइ रीते समजी शकातुं नथी.* स्त्रीओओ अकला कथा सांभळवा बेसबुं नहि, पण ओछामां ओछी त्रण स्त्रीओओ साथे बेसवु. ए प्रतिबन्धD कारण सहज समजी शकाय छे. दरेक जैने जम्यो होय ते पची जाय तेटलो वखत वीताववो, ते पहेलां बीजीवार कंइ खावू नहि. ने पछी ठरावेला नियमित वखते जमवू. ते पण पोताना शरीरने अनुकूळ पडे ते ज खावं. कोइ पण चीज हद उपरान्त खावी नहि. तेणे सुखचेन, दोलत तथा सद्वृत्तिने पामवानो फक्त ओवी रीते यत्न करवो के जेथी त्रणेमांथी कोइ पण बाबतमां खामी आवी जाय नहि. तेणे अतिथि तेमज साधुनो सत्कार करवो. तेणे कोइपण वस्तु पर बहु लोलुपता राखवी नहि. सर्वे प्रकारना सद्गुणो तरफ तेणे प्रीति राखवी. देशकाळने अनुसरतां न होय ओवा चाल तेणे तजी देवा. पोते कइ कइ बाबतमां बळवन्त तथा नबळो छे तथा बीजाओगें जोर तथा ★ अत्रे आठ बुद्धिना गुणो साथे व्याख्यान सांभळवा विधान छे. "अष्टभिर्धीगुणैर्युक्तः, शृण्वानो धर्ममन्वहम् ।" – (योग. १-५१). बनी शके के डो. पीटरसनने 'अष्टभिर्द्विगुणैः' वांचवामां आव्युं होय अने तेथी तेओ उपरोक्त विधान करवा प्रेराया होय.
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy