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________________ १२२ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ श्रीरूपचदमुनिकृता साध्वाचारषट्त्रिंशिका ॥ - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि जैन मुनिना आचारोने लईने प्रार्थना के भावनारूपे रचाएली शान्तरस नीतरती एक सुन्दर शुद्धप्राय काव्यरचना अहीं प्रस्तुत छे. 'साधुपदना शुद्ध आचारोनुं पालन करवानो अने ते रीते आत्मकल्याण साधवानो अवसर मने क्यारे मळशे ?' आवी प्रभु-प्रार्थना ए आ लघु काव्यनो प्रधान सूर छे. छ जीवकायोनी रक्षा, पांच व्रतो, पालन, नव ब्रह्मचर्यनी वाडो, पांच इन्द्रियोनो विषयोपभोग, रात्रिभोजनत्याग, इत्यादि विषयोनुं विशद अने प्राञ्जल भाषामां अहीं वर्णन थयुं छे. ३४ पद्यो शिखरिणी छन्दमां अने छेल्लुं पद्य स्रग्धरामां रचायुं छे. वर्णन हृदयस्पर्शी अने प्रेरणादायी छे. आना रचयिता 'रूपचन्द्र' छे तेवं अन्तिम पद्यथी जाणवा मळे छे. ते साधु छे के गृहस्थ ?, तेमनी परम्परा कई ? समय कयो ? वगेरे मुद्दे कोई खुलासो मळतो नथी. सम्भवतः खरतरगच्छमां थयेला अने 'गौतमीय महाकाव्य'ना प्रणेता वाचक रूपचन्द्र ते ज आ होय तेवू, तेमनी काव्यरचना जोईने मानवानुं मन थाय छे. ते अटकळ साची होय तो तेमनो सत्तासमय १९मो शतक हतो ते निश्चित छे. आ प्रति प्रमाणमां शुद्धप्राय छे, तेनो लेखन संवत् १९६२ छे. भावनगरनी जैन आत्मानन्द सभामांना मुनि भक्तिविजयजीना ग्रन्थसङ्ग्रहगत प्रतिनी, त्यांथी प्राप्त थयेल जेरोक्स नकलना आधारे अहीं सम्पादन करवामां आव्युं छे. नकल आपवा बदल सभाना कार्यवाहकोनो आभार मानुं छु
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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